रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस के प्रमुख दिमित्री बकनोव ने अपने बयान में पुष्टि की कि भारत के साथ रॉकेट इंजन पर एक अहम समझौता अंतिम चरण में है। बकनोव ने मानव अंतरिक्ष उड़ान और भविष्य के अंतरिक्ष स्टेशनों पर भी सहयोग की संभावना जताकर यह साफ कर दिया कि दोनों देशों की साझेदारी अब केवल प्रक्षेपण यानों तक सीमित नहीं रहने वाली।
भारत–रूस की वापसी: इतिहास से भविष्य तक
भारत और रूस का स्पेस सहयोग नया नहीं है। इससे पहले इसरो ने अपने शुरुआती जीएसएलवी रॉकेटों के लिए रूस से क्रायोजेनिक इंजन खरीदे थे, लेकिन अमेरिकी भू-राजनीतिक दबाव के कारण उस दौर में तकनीक हस्तांतरण संभव नहीं हो सका।
इसके बाद भारत ने अपने क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने की कठिन राह पकड़ी। आज इसरो क्रायोजेनिक इंजन क्षेत्र में काफी आगे बढ़ चुका है, लेकिन सेमी-क्रायोजेनिक तकनीक के विकास में प्रगति धीमी रही है। इसी कमी को पूरा करते हुए रूस का RD-191 भारत के लिए गेम चेंजर बन सकता है।
एलवीएम3 को नई ताकत: पेलोड क्षमता में बड़ा उछाल
भारत अपने प्रमुख भारी प्रक्षेपण यान LVM3 (लॉन्च व्हीकल मार्क–3) को और अधिक शक्तिशाली बनाना चाहता है। फिलहाल LVM3 लगभग 4 टन पेलोड को भूस्थिर कक्षा तक पहुंचा पाता है, लेकिन वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ने के साथ यह क्षमता पर्याप्त नहीं मानी जाती।
योजना है कि LVM3 के दूसरे चरण में लगे वर्तमान तरल इंजन को एक सेमी-क्रायोजेनिक RD-191 जैसे इंजन से बदला जाए। यह बदलाव पेलोड क्षमता को 5 टन से अधिक तक बढ़ाएगा, वाणिज्यिक लॉन्च मार्केट में भारत को बेहतर अवसर देगा। न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के माध्यम से अधिक विदेशी ग्राहकों को आकर्षित करेगा।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि RD-191 और इसरो के उन्नत क्रायोजेनिक इंजन के संयोजन से LVM3 GEO तक लगभग 7 टन पेलोड पहुंचाने में सक्षम हो सकता है जो भारत की भारी उपग्रह लॉन्चिंग प्रणाली को एक नई श्रेणी में पहुंचा देगा।

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