बिहार जमीन सर्वे 2025: नहीं चाहिए सारे कागजात!

पटना, मई 2025 — बिहार में जमीन के डिजिटल भू-लेख तैयार करने की महत्वाकांक्षी योजना तेजी से आगे बढ़ रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर कई चुनौतियां इस प्रक्रिया को धीमा कर रही हैं। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि यह अभियान दिसंबर 2026 तक पूरा हो, लेकिन अभी भी हजारों रैयत (भूमि धारक) कागजात की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं, और कई इलाकों में अधिकारी भी स्थिति को लेकर असमंजस में हैं।

31 मार्च की डेडलाइन आगे बढ़ी, लेकिन नई तारीख नहीं

पहले सरकार ने रैयतों से स्व-घोषणा पत्र, प्रपत्र-3 (वंशावली विवरण) 31 मार्च 2025 तक जमा करने को कहा था। अब सरकार ने इसे आगे बढ़ाने की बात तो कही है, लेकिन अभी तक नई समय-सीमा का कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है। इससे लोगों में असमंजस और चिंता दोनों है।

राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री संजय सरावगी ने स्पष्ट किया है कि जिनके पास जो भी वैध दस्तावेज हैं, उनके आधार पर दावा दर्ज करें। लेकिन ग्रामीणों को डर सता रहा है कि अधूरे या पुराने कागजातों के आधार पर किया गया दावा कहीं भविष्य में खारिज न हो जाए।

बिहार में जमीन सर्वे के आंकड़े क्या कहते हैं?

राज्यभर में अब तक 15,23,332 जमाबंदी रिकॉर्ड तैयार किए जा चुके हैं, जिनमें से 14,09,278 रिकॉर्ड सही पाए गए हैं। लेकिन 1,85,946 रिकॉर्ड में त्रुटियां पाई गई हैं। अब तक 8,57,316 स्व-घोषणा पत्र जमा हुए हैं, जिनमें से 19,707 अभी अपलोड नहीं किए जा सके हैं। प्रपत्र-5 के तहत 1197 राजस्व ग्रामों में खेसरा प्रविष्टि का काम शुरू हुआ था, जिसमें से 834 ग्रामों में कार्य पूरा हो चुका है।

डिजिटल नक्शे तैयार, कानूनी दावे अधूरे

सरकार ने आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए हवाई सर्वेक्षण (ऑर्थो फोटोग्राफी) के माध्यम से डिजिटल नक्शे तैयार कर लिए हैं। मगर असली चुनौती तब तक बनी रहेगी जब तक हर रैयत का दावा-पत्र और पारिवारिक वंशावली फॉर्म भरकर सत्यापित नहीं हो जाता। बिना इसके किसी भी भूमि स्वामित्व का कानूनी दर्जा नहीं मिल सकता।

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