तकनीक की ऊंची उड़ान, लेकिन चुनौतियां भी भारी
भारत ने रक्षा और एयरोस्पेस के क्षेत्र में बीते दो दशकों में बड़ी प्रगति की है। लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की कोशिशों से भारत अब लड़ाकू विमान डिजाइन और निर्माण में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। लेकिन जब बात जेट इंजन की आती है, तो अब भी देश को विदेशी तकनीक और आपूर्ति पर निर्भर रहना पड़ता है।
Kaveri Engine Project: अधूरी उड़ान
भारत ने 1986 में "कावेरी इंजन" नामक एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की थी, जिसका उद्देश्य पूरी तरह स्वदेशी जेट इंजन तैयार करना था। हालांकि वर्षों की मेहनत और हजारों करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद यह प्रोजेक्ट अब तक सफल नहीं हो पाया है। तकनीकी जटिलताएं, उच्च तापमान पर स्थिरता और मटेरियल साइंस की कमी इसके मुख्य कारण रहे हैं।
GE और Safran से सहयोग की उम्मीद
हाल ही में भारत ने अमेरिकी कंपनी GE (General Electric) और फ्रांस की Safran के साथ इंजन तकनीक के ट्रांसफर को लेकर गंभीर बातचीत की है। GE के साथ HAL की डील के तहत भारत में GE F414 इंजन का निर्माण किया जाएगा, जो तेजस मार्क-2 में इस्तेमाल होगा। वहीं फ्रांस की Safran के साथ जॉइंट वेंचर की योजना है, जिसमें इंजन डिजाइन से लेकर मैन्युफैक्चरिंग तक भारत में करने की तैयारी हैं।
भारत का अगला कदम क्या होगा?
भारत सरकार ने 'आत्मनिर्भर भारत' के तहत रक्षा क्षेत्र को प्राथमिकता दी है। इंजन निर्माण के लिए अत्याधुनिक मटेरियल, कंपोजिट टेक्नोलॉजी, थर्मल मैनेजमेंट और माइक्रो इंजीनियरिंग की ज़रूरत होती है। इसके लिए भारत को अनुसंधान और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी— दोनों में समान रूप से निवेश करना होगा। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत तकनीकी रूप से जेट इंजन बनाने की दिशा में है, लेकिन यह एक लंबी और धैर्य की मांग करने वाली प्रक्रिया है। लेकिन जल्द ही भारत जेट इंजन बनाने वाला छठा देश बन सकता है।
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