क्या था मामला?
1984 से 1989 के बीच उत्तर प्रदेश जल निगम में कार्यरत दैनिक वेतनभोगियों को, पांच वर्षों की सेवा पूरी करने के आधार पर वर्ष 1991 में चौकीदार, खलासी, रनर, वर्क एजेंट, सर्वे मुंशी, रिंग ड्राइवर, फिटर, हेल्पर, पंप ऑपरेटर और इलेक्ट्रिशियन जैसे पदों पर नियमित किया गया था।
लेकिन 2020 में योगी सरकार के निर्देश पर जल निगम के एमडी ने इन कर्मचारियों के नियमितीकरण को 1991 की जगह 2011 से प्रभावी माना और 1991 से 2011 के बीच दिए गए वेतन की वसूली के आदेश जारी कर दिए। इससे कर्मचारियों में आक्रोश फैल गया और मामला अदालत पहुंचा।
अदालत का ऐतिहासिक फैसला
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी और जस्टिस अताउर रहमान मसूदी की खंडपीठ ने जल निगम के एमडी द्वारा 18 और 20 अगस्त 2020 को जारी आदेशों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि: ग्रुप 'बी' और 'सी' के कर्मचारियों से वेतन की वसूली नहीं की जाएगी। ग्रुप 'ए' के कर्मचारी पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ पूर्ववत प्राप्त करते रहेंगे।
अवमानना मामले में भी कोर्ट सख्त, प्रमुख सचिव को तलब किया
उधर, लखनऊ खंडपीठ ने राजस्व परिषद के प्रमुख सचिव पी. गुरू प्रसाद को अवमानना का नोटिस जारी किया है। मामला नायब तहसीलदार अलख शुक्ला और अन्य की पदोन्नति से जुड़ा है। कोर्ट ने पूर्व में इन अधिकारियों को तहसीलदार पद पर पदोन्नति देने का आदेश दिया था, जिसे विभाग ने अनदेखा कर दिया।
परिवादी के वकील एल.पी. मिश्रा के अनुसार, जूनियर अधिकारियों को पदोन्नत कर दिया गया, लेकिन वरिष्ठ पात्रों को दरकिनार कर दिया गया। कोर्ट ने इसे स्पष्ट उल्लंघन मानते हुए 7 जुलाई को प्रमुख सचिव को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर जवाब देने का आदेश दिया है। इसी दिन कोर्ट उन पर आरोप तय करेगा।
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