यह ऐतिहासिक फैसला न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने विवेक राज मिश्रा समेत कुल 85 याचियों द्वारा दायर याचिका को निस्तारित करते हुए सुनाया। याचियों की ओर से बहस वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं अतिप्रिया गौतम ने की। याचिका में कहा गया था कि सभी कंप्यूटर ऑपरेटरों की नियुक्ति वर्ष 2014 में ग्रेड-ए पद पर हुई थी और उन्होंने 10 वर्षों से अधिक की सेवा पूरी कर ली है, लेकिन उन्हें अब तक प्रथम ग्रेड-पे नहीं दिया गया है, जो कि शासनादेशों के अनुसार उनका अधिकार है।
पुलिस मुख्यालय को 3 माह में आदेश जारी करने का निर्देश
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस के तकनीकी सेवाएं मुख्यालय को यह निर्देश भी दिया है कि वह तीन माह के भीतर सभी पात्र कर्मचारियों को ग्रेड-पे ₹4200 देने संबंधी आदेश पारित करे। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि उनकी ट्रेनिंग अवधि को सेवा में जोड़ा जाए, जिससे वे वेतनमान के पात्र बन सकें।
शासनादेश और नियमावली का उल्लंघन
वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार द्वारा 5 नवम्बर 2014 को जारी शासनादेश के तहत किसी भी कर्मचारी को उसकी पहली नियुक्ति की तिथि से 10 वर्ष पूर्ण होने पर प्रोन्नति वेतनमान मिलना चाहिए। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश कंप्यूटर स्टाफ (नॉन गैजेटेड) सेवा नियमावली-2011 के अनुसार, ग्रेड-ए पर 6 वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद ग्रेड-बी पर पदोन्नति दी जानी चाहिए थी, जो याचियों को वर्ष 2020 में मिल जानी चाहिए थी।
लाल बाबू शुक्ला केस का हवाला
याचियों ने अपने पक्ष में "लाल बाबू शुक्ला बनाम उत्तर प्रदेश राज्य" मामले का भी हवाला दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि प्रशिक्षण अवधि को भी सेवा में जोड़ा जाए और उसी के अनुसार प्रोन्नति वेतनमान दिया जाए। याचियों का कहना था कि उन्होंने एफआईआर लेखन, केस डायरी और अन्य तकनीकी व प्रशासनिक कार्यों में अपनी सेवाएं दी हैं, लेकिन उनके साथ न्याय नहीं हुआ।
किन जिलों के कर्मचारी शामिल?
ललितपुर, झांसी, मऊ, आजमगढ़, भदोही, जौनपुर, कौशाम्बी, प्रयागराज, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, मेरठ, आगरा, कानपुर नगर, बरेली, मुरादाबाद, गोरखपुर, वाराणसी, अलीगढ़, बुलंदशहर व हापुड़ जिलों में कार्यरत कंप्यूटर ऑपरेटर।
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