बता दें की एमएलसी अरुण कुमार पाठक की ओर से उठाए गए सवाल के अनुसार, 14 जनवरी और 20 फरवरी 2004 को जारी विज्ञापन के जरिए चयनित अभ्यर्थियों का छह माह का प्रशिक्षण अगस्त 2004 में शुरू हुआ था। विभागीय देरी के कारण इन शिक्षकों को दिसंबर 2005 और जनवरी 2006 में तैनात किया गया। 31 अक्टूबर 2005 को जारी एक पत्र में यह भी स्पष्ट किया गया था कि एससीईआरटी ने 2004 में ही भर्ती के लिए विज्ञापन जारी कर दिया था, इसलिए नया विज्ञापन जारी करने की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही 14 और 22 जनवरी 2004 के शासनादेशों में प्रशिक्षण पूरा होने तक अभ्यर्थियों को 2500 रुपये प्रति माह मानदेय देने का निर्देश था।
इन तथ्यों के आधार पर शिक्षकों ने पुरानी पेंशन योजना का लाभ दिए जाने की मांग की थी। उनका तर्क था कि यह प्रशिक्षण भर्ती प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा था, इसलिए उन्हें पुराने पेंशन नियमों के तहत लाभ मिलना चाहिए। लेकिन सचिव सुरेंद्र कुमार तिवारी ने हाईकोर्ट के आदेशों और उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा (अध्यापक) (तैनाती) नियमावली 2008 का हवाला देते हुए कहा कि सेवा अवधि का मतलब नियमित रूप से अध्यापक के पद पर कार्य करने की अवधि होता है, न कि प्रशिक्षण का समय।
उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रशिक्षण अवधि को सेवा अवधि में शामिल नहीं किया जा सकता, इसलिए इन शिक्षकों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ नहीं मिलेगा। इस फैसले के बाद शिक्षकों में निराशा और विरोध की स्थिति बनी है। शिक्षक संगठनों ने इस निर्णय को अनुचित बताया है और सरकार से पुनर्विचार की मांग की है। वे कहते हैं कि विभागीय देरी के कारण जो भी विलंब हुआ, उसे सेवा अवधि से अलग नहीं किया जाना चाहिए।
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