1. अमेरिका: टेक्नोलॉजी का पावरहाउस
अमेरिका दशकों से अंतरिक्ष अनुसंधान में अग्रणी रहा है। NASA के अलावा स्पेसX, Blue Origin जैसी निजी कंपनियां भी अमेरिका की रॉकेट इंजन टेक्नोलॉजी को नई ऊंचाइयों पर ले जा रही हैं। RD-180, RS-25 और Raptor जैसे इंजन वैश्विक स्तर पर टेक्नोलॉजी की मिसाल बन चुके हैं।
2. रूस: रॉकेट साइंस का अनुभवी खिलाड़ी
सोवियत संघ के समय से ही रूस रॉकेट इंजन तकनीक में अग्रणी रहा है। आज भी रूसी इंजन जैसे RD-180, RD-170 और Soyuz रॉकेट के इंजन विश्वसनीयता और दमदार प्रदर्शन के लिए जाने जाते हैं। रूस की तकनीक अब भी कई अंतरराष्ट्रीय मिशनों में इस्तेमाल होती है।
3. चीन: तेज़ी से उभरती अंतरिक्ष ताकत
चीन की अंतरिक्ष एजेंसी CNSA ने बीते कुछ वर्षों में लंबी छलांग लगाई है। ‘लॉन्ग मार्च’ सीरीज़ के ज़रिए चीन ने न केवल स्वदेशी रॉकेट इंजन विकसित किए हैं, बल्कि चंद्रमा और मंगल तक मिशन भेजकर अपनी क्षमता भी साबित की है।
4. भारत: आत्मनिर्भर भारत की अंतरिक्ष उड़ान
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने PSLV और GSLV रॉकेटों के ज़रिए देश को तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया है। खासकर Cryogenic Upper Stage इंजन और हाल ही में विकसित सेमी-क्रायोजेनिक इंजन भारत की बढ़ती क्षमता को दर्शाते हैं। चंद्रयान, मंगलयान और गगनयान जैसे मिशनों में यह तकनीक प्रमुख भूमिका निभा रही है।
5. जापान: सटीकता और तकनीक का संगम
जापान की स्पेस एजेंसी JAXA ने H-IIA और H3 लॉन्च व्हीकल्स के ज़रिए तकनीकी मजबूती का प्रदर्शन किया है। इनके विकसित किए गए LE-7A जैसे लिक्विड फ्यूल इंजन जापानी इंजीनियरिंग की सटीकता को दर्शाते हैं।
6. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA): बहुराष्ट्रीय तकनीकी ताकत
ESA एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो कई यूरोपीय देशों के सहयोग से संचालित होता है। इसका प्रमुख लॉन्च वाहन Ariane 5 और अब नया Ariane 6 है, जिसमें Vinci और Vulcain जैसे उन्नत इंजन लगे होते हैं। ESA ने कई अंतरराष्ट्रीय मिशनों में अहम भूमिका निभाई है।
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