यूपी में बिजली के निजीकरण को लेकर बड़ा फैसला

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में बिजली वितरण के निजीकरण को लेकर एक अहम मोड़ सामने आया है। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण से जुड़े बिडिंग दस्तावेजों पर अब राज्य सरकार सीधे उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (UPERC) से अभिमत लेगी। यह कदम विद्युत अधिनियम-2003 की धारा 86(2)(4) के तहत उठाया गया है, जिसके तहत राज्य सरकार को अधिकार है कि वह किसी मसले को आयोग के पास संदर्भित करे।

अब तक यह प्रक्रिया उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के माध्यम से चल रही थी, लेकिन चूंकि अधिनियम के तहत पावर कॉरपोरेशन को आयोग से अभिमत लेने का कोई अधिकार नहीं है, इसलिए इस प्रक्रिया पर लगातार सवाल उठाए जा रहे थे। मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली ऊर्जा टास्क फोर्स ने पहले पावर कॉरपोरेशन को आयोग से राय लेने का निर्देश दिया था, जो कि अब बदला जा रहा है।

परिषद और कर्मचारी संगठनों ने उठाए आपत्ति

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद और विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने इस पूरे मामले में कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि पावर कॉरपोरेशन को आयोग से राय लेने का कानूनी अधिकार नहीं है, इसलिए यह कार्य अब राज्य सरकार स्वयं करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि विद्युत अधिनियम की धारा 17 के तहत किसी भी बिजली लाइसेंसधारी कंपनी के क्रय, विक्रय या टेकओवर के लिए नियामक आयोग से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है, लेकिन इस प्रक्रिया में ऐसा कुछ नहीं किया गया।

सलाहकार कंपनी पर भी उठे सवाल

बिजली निजीकरण के लिए नियुक्त की गई सलाहकार कंपनी ग्रांट थार्नटन की वैधानिकता को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है। समिति ने आरोप लगाया है कि इस कंपनी का चयन अवैधानिक तरीके से हुआ है और आयोग को उसकी रिपोर्ट पर कोई विचार नहीं करना चाहिए। आयोग ने पहले ही इस सलाहकार कंपनी के साथ बैठक करने से इंकार कर दिया था।

आयोग अध्यक्ष की भूमिका पर भी संदेह

विवाद का एक अहम पहलू आयोग के मौजूदा अध्यक्ष अरविंद कुमार से जुड़ा है। जब वह पावर कॉरपोरेशन के चेयरमैन थे, तब 6 अक्तूबर 2020 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि प्रदेश में किसी भी स्तर पर निजीकरण नहीं किया जाएगा। ऐसे में अब जब वह आयोग के अध्यक्ष हैं, तो उनके द्वारा निजीकरण से जुड़े दस्तावेजों पर राय देना हितों का टकराव (Conflict of Interest) माना जा रहा है।

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