बता दें की संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने आदेश को "तानाशाहीपूर्ण" करार देते हुए कहा कि संविदा कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छंटनी पहले से ही चल रही है, और अब नियमित कर्मियों का वेतन रोकना कर्मचारियों के साथ अन्याय है। उन्होंने सरकार से रुके वेतन का तत्काल भुगतान और छंटनी किए गए कर्मचारियों की बहाली की मांग की है।
अनशन के पहले दिन संघर्ष समिति से जुड़े केंद्रीय पदाधिकारी धरने पर बैठे। इसके साथ ही उत्तराखंड के बिजली अभियंता संघ के महासचिव राहुल चानना समेत उत्तराखंड और मध्य प्रदेश के कई अभियंता भी इस आंदोलन में शामिल हुए हैं। आंदोलनकारियों का कहना है कि सरकार निजीकरण की ओर तेजी से कदम बढ़ा रही है, जो न केवल कर्मचारियों की नौकरी को खतरे में डालता है, बल्कि उपभोक्ताओं को भी प्रभावित करेगा।
शनिवार को लखनऊ, केस्को व कानपुर क्षेत्र के अभियंताओं के साथ मध्य प्रदेश के अभियंता भी आंदोलन में शिरकत करेंगे। संघर्ष समिति का कहना है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। इस बीच ऊर्जा विभाग की ओर से इस पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि फेशियल अटेंडेंस को लेकर बनाई गई सख्त नीति और कर्मचारियों की उपेक्षा से सरकार और कर्मचारियों के बीच टकराव और गहरा सकता है।
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