कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश अशुतोष कुमार और न्यायाधीश पार्थ सारथी की खंडपीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य सरकार तीन महीने के भीतर संबंधित विश्वविद्यालयों को आवश्यक अनुदान जारी करे, ताकि शिक्षकों को बकाया भुगतान समय पर मिल सके।
सरकार की दलीलें खारिज
राज्य सरकार ने कोर्ट में यह तर्क दिया था कि बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 57-A में वर्ष 2015 में जो संशोधन किया गया, उसका लाभ केवल 'परफॉर्मेंस ग्रांट' प्राप्त करने वाले कॉलेजों के शिक्षकों को मिलना चाहिए। लेकिन अदालत ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि यह भेदभावपूर्ण सोच है और शिक्षा नीति के मूल उद्देश्यों के खिलाफ है।
नियमित नियुक्ति, फिर भी लाभ से वंचित
इन शिक्षकों की नियुक्ति कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी द्वारा की गई थी और बाद में कॉलेज स्तर पर गठित चयन समिति के माध्यम से उन्हें नियमित रूप से नियुक्त किया गया। इसके बावजूद बड़ी संख्या में ऐसे शिक्षक वेतन और पेंशन जैसे बुनियादी लाभों से वंचित थे। कोर्ट ने माना कि इन निजी कॉलेजों की स्थापना राज्य सरकार की तरफ से नए कॉलेज न खोलने की नीति के चलते हुई थी। इनमें योग्य संकाय सदस्य हैं और इन्हें राज्य की उच्च शिक्षा प्रणाली में शामिल करना अनिवार्य है।
सेवानिवृत्त शिक्षकों को भी मिलेगा लाभ
कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि जो शिक्षक सेवा से निवृत्त हो चुके हैं, उन्हें भी पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ मिलेंगे। इसके लिए सरकार को पर्याप्त समय देते हुए तीन माह की सीमा तय की गई है, ताकि वित्तीय प्रक्रिया पूरी कर भुगतान सुनिश्चित किया जा सके।
0 comments:
Post a Comment