क्यों खास होती है मथुरा-वृंदावन की जन्माष्टमी?
मथुरा, वह पावन नगर है जहां द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। वहीं वृंदावन वह भूमि है जहां बाल गोपाल ने अपने बाल्यकाल की लीलाओं से संपूर्ण ब्रह्मांड को मोहित किया। जन्माष्टमी के दिन यहां की गलियों, मंदिरों और आश्रमों में ऐसी आध्यात्मिक ऊर्जा होती है जिसे शब्दों में व्यक्त कर पाना कठिन है। मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर में जन्माष्टमी पर रात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण जन्म की विशेष आरती होती है। भक्तों की लाखों की संख्या में उपस्थिति, भजन-कीर्तन, और घंटियों की गूंज से पूरा वातावरण कृष्णमय हो जाता है।
बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन में मंगला आरती
वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी की रात एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है—मंगला आरती, जो पूरे वर्ष में केवल एक बार इसी दिन होती है। आम दिनों में इस मंदिर में मंगला आरती नहीं होती, क्योंकि मान्यता है कि ठाकुर जी रात्रि में निधिवन में गोपियों संग रास रचाते हैं और विश्राम करते हैं, इसलिए उन्हें प्रातःकाल जल्दी नहीं जगाया जाता।
परंतु जन्माष्टमी के दिन, चूंकि यह भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य दिवस होता है, इसलिए रात्रि 12 बजे उनके प्रकट होने के ठीक बाद मंगला आरती की जाती है। यह दृश्य इतना दिव्य और अलौकिक होता है कि श्रद्धालु इस एक झलक के लिए घंटों इंतजार करते हैं।
निधिवन की परंपरा और जन्माष्टमी
निधिवन, वृंदावन का वह रहस्यमयी स्थान है जिसे लेकर अनेकों किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि रात्रि में ठाकुर जी यहां गोपियों संग रास रचाते हैं, और इसीलिए वहां रात्रि प्रवेश वर्जित है। लेकिन जन्माष्टमी की रात यह दिव्य रास नहीं होता, क्योंकि उस रात ठाकुर जी का जन्म होता है और भक्तगण उनके बाल स्वरूप का उत्सव मनाते हैं।
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