रूस की नई मिसाइल से कांपा NATO, भारत के लिए क्या मायने?

न्यूज डेस्क। रूस ने हाल ही में एक ऐसी मिसाइल विकसित की है, जिसने वैश्विक शक्ति समीकरणों को हिला कर रख दिया है। यह हाइपरसोनिक मिसाइल—जिसे ‘ओरेशनिक’ नाम दिया गया है—12,000 किमी/घंटा की रफ्तार से अपने लक्ष्य की ओर दौड़ सकती है। यानी मैक 10 की स्पीड से चलने वाली यह मिसाइल इतनी तेज है कि इसे वर्तमान रडार टेक्नोलॉजी से पकड़ना लगभग नामुमकिन है।

यह मिसाइल न केवल तेज है, बल्कि इससे भी खतरनाक इसकी मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल रीएंट्री व्हीकल (MIRV) तकनीक है, जो इसे एक साथ कई टारगेट पर हमला करने में सक्षम बनाती है। यही वजह है कि अमेरिका, ब्रिटेन और NATO के अन्य देश अब खुलकर चिंता जताने लगे हैं।

बेलारूस में तैनाती: पश्चिमी देशों की नींद उड़ाई

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस मिसाइल को साल के अंत तक बेलारूस में तैनात करने का ऐलान किया है। बेलारूस की भौगोलिक स्थिति रूस के लिए रणनीतिक रूप से बेहद फायदेमंद है। यह न सिर्फ यूक्रेन के नजदीक है, बल्कि यहां से यूरोप के लगभग सभी प्रमुख देश 5000 किलोमीटर की सीमा के भीतर आ जाते हैं। इसका सीधा मतलब है: ओरेशनिक मिसाइल की पहुंच में अब NATO के सभी देश आ चुके हैं। यही कारण है कि NATO के जनरल मीटिंग्स में रूस की इस नई मिसाइल को लेकर सुरक्षा रणनीतियों पर मंथन शुरू हो चुका है।

भारत के लिए क्या मायने रखती है यह मिसाइल?

भारत और रूस की सैन्य साझेदारी दशकों पुरानी है। ब्रह्मोस मिसाइल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसे दोनों देशों ने मिलकर विकसित किया है। ऐसे में एक्सपर्ट्स का मानना है कि रूस अपनी ओरेशनिक मिसाइल टेक्नोलॉजी का कुछ हिस्सा भारत के साथ साझा कर सकता है—बशर्ते सामरिक भरोसे का संतुलन बना रहे। भारत पहले ही ब्रह्मोस को हाइपरसोनिक बनाने के लिए रिसर्च कर रहा है, और अगर रूस की तकनीक इसमें शामिल होती है, तो यह भारत की स्ट्रैटेजिक कैपेबिलिटी को एक नई ऊंचाई तक पहुंचा सकती है।

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