बता दें की यह अहम जानकारी इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) के अध्यक्ष पवन कुमार गोयनका ने दी। उन्होंने बताया कि इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत रक्षा क्षेत्र की निगरानी क्षमताओं को कई गुना बढ़ाया जाएगा और इसमें निजी क्षेत्र की भी बड़ी भूमिका होगी।
ISRO और निजी क्षेत्र की साझेदारी से बनेगा ‘स्पेस वॉल’
गोयनका ने बताया कि इसरो अब तक देश की अंतरिक्ष निगरानी क्षमताओं को अकेले संभालता आया है, लेकिन अब निजी कंपनियों को भी इस कार्य में शामिल किया जाएगा। 52 प्रस्तावित उपग्रहों में से लगभग आधे उपग्रह निजी कंपनियों द्वारा निर्मित किए जाएंगे, जबकि शेष इसरो के जिम्मे होंगे। यह कदम भारत के स्पेस सेक्टर के निजीकरण की दिशा में एक ऐतिहासिक पड़ाव माना जा रहा है।
मिशन का मुख्य उद्देश्य: निगरानी और मजबूत सुरक्षा
इन सैटेलाइट्स की मदद से भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना को सीमाओं पर दुश्मन की गतिविधियों पर पैनी नजर रखने, आतंकी घुसपैठ को रोकने, समुद्री निगरानी करने और सैन्य अभियानों के दौरान सटीक समन्वय स्थापित करने में जबरदस्त मदद मिलेगी। इससे भारत की रियल-टाइम इंटेलिजेंस और रिस्पॉन्स क्षमता में जबरदस्त सुधार होगा।
SSLV तकनीक से होंगे लॉन्च, ट्रांसफर की प्रक्रिया
इन सैटेलाइट्स को इसरो की विकसित की गई लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) तकनीक से लॉन्च किया जाएगा। खास बात यह है कि इस तकनीक को अब निजी क्षेत्र को हस्तांतरित किया जा रहा है ताकि भारत में उपग्रहों के प्रक्षेपण का स्तर और भी तीव्र व प्रतिस्पर्धात्मक बन सके।
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