सरकारी जमीनों की पहचान के लिए जारी किए गए दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि गैर मजरूआ खास, अनाबाद सर्वसाधारण, तालाब, आहर, पइन या परती जैसी श्रेणियों की भूमि पर यदि किसी ने अवैध कब्जा कर लिया है, तो उनके नाम से खाता नहीं खुलेगा। इसके बजाय संबंधित भूमि को सरकार के नाम दर्ज किया जाएगा।
अवैध रसीद और जमाबंदी होगी अमान्य
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि गलत तरीके से की गई रसीद कटाई या जमाबंदी अब मान्य नहीं मानी जाएगी। भूमि रिकॉर्ड्स के डिजिटलीकरण और पारदर्शी खतियान तैयार करने की प्रक्रिया में ऐसे सभी रिकॉर्ड्स की गहन जांच की जा रही है। यदि किसी भी स्तर पर अनियमितता पाई जाती है, तो उसे रद्द कर दिया जाएगा।
पुराने रैयतों को राहत
हालांकि, नियमों में कुछ अपवाद भी रखे गए हैं। यदि कोई ज़मींदार 1 जनवरी 1946 से पहले किसी रैयत को गैर मजरूआ खास भूमि का वैध पट्टा देता है, और जमींदारी उन्मूलन के बाद से लगातार सरकारी लगान की रसीद का भुगतान होता रहा है, तो ऐसे मामलों में उचित दस्तावेजों के आधार पर जमीन रैयत के नाम दर्ज की जा सकती है।
सरकारी कदम की अहमियत
इस सख्ती का मकसद यह है कि सरकारी जमीनों पर वर्षों से चले आ रहे अवैध कब्जों को हटाया जा सके और भूमि रिकॉर्ड्स को एकरूप व पारदर्शी बनाया जा सके। इस अभियान से उन लोगों को बड़ा झटका लग सकता है, जिन्होंने सरकारी जमीन पर कब्जा कर उसे अपने नाम करवाने की कोशिश की है। बिहार सरकार का यह कदम राज्य में भूमि विवादों को कम करने, सरकारी संपत्तियों की रक्षा करने और डिजिटल खतियान के माध्यम से साफ-सुथरा रिकार्ड बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
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