रॉकेट इंजन में भारत की मजबूती
ISRO द्वारा विकसित ‘विकास इंजन’, ‘क्रायोजेनिक इंजन’ और अब सेमी-क्रायोजेनिक इंजन भारत की स्वदेशी क्षमताओं के प्रमाण हैं। PSLV और GSLV की निरंतर सफलता ने दुनिया भर में भारत की तकनीकी क्षमता को मान्यता दिलाई है।
2023 में चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग और 2024 में आदित्य-एल1 मिशन की लॉन्चिंग भारत की आत्मनिर्भर रॉकेट तकनीक की ही देन है। भारत अब विदेशी तकनीक पर निर्भर नहीं, बल्कि अंतरिक्ष प्रक्षेपण के लिए खुद पर निर्भर राष्ट्र बन चुका है।
जेट इंजन: अब भी विदेशी मोहताज
इसके विपरीत, रक्षा और उड्डयन क्षेत्र में भारत को अब भी विदेशी जेट इंजन तकनीक पर निर्भर रहना पड़ता है। HAL तेजस जैसे लड़ाकू विमान अब भी अमेरिकी General Electric द्वारा निर्मित इंजन का उपयोग करते हैं। भारत ने स्वदेशी जेट इंजन के विकास के लिए ‘कावेरी इंजन परियोजना’ शुरू की थी, लेकिन यह परियोजना तकनीकी और प्रबंधन संबंधी कारणों से अपेक्षित सफलता नहीं पा सकी। लगभग तीन दशकों से चली आ रही यह परियोजना अब DRDO के प्रयासों के बावजूद भी पूरी तरह सफल नहीं हो सकी है।
विशेषज्ञों की राय
रक्षा विश्लेषक के अनुसार, “रॉकेट इंजन का उपयोग सीमित समय और एक दिशा में thrust देने के लिए होता है, जबकि जेट इंजन को लंबे समय तक, बदलती ऊंचाई और गति पर लगातार प्रदर्शन करना होता है। इसकी जटिलता कई गुना अधिक होती है।”
तकनीकी विशेषज्ञ मानते हैं कि जेट इंजन में प्रयुक्त धातुएं, उच्च तापमान पर प्रदर्शन करने वाले टरबाइन ब्लेड, और कम वज़न में उच्च शक्ति जैसे कारकों के कारण यह तकनीक विकसित करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण है। हालांकि भारत अब जेट इंजन निर्माण में भी तेजी से आगे बढ़ रहा हैं।
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