भारत ने हाल ही में रक्षा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए हाइपरसोनिक तकनीक में बड़ी छलांग लगाई है। देश की पहली हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण कर भारत ने दुनिया को यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि अब वह केवल एक रक्षा उपभोक्ता नहीं, बल्कि तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर और प्रतिस्पर्धी शक्ति बन चुका है। इस परीक्षण ने न केवल चीन बल्कि अन्य वैश्विक ताकतों को भी चौंका दिया है।
क्या है हाइपरसोनिक तकनीक?
हाइपरसोनिक मिसाइलें ऐसी प्रौद्योगिकी पर आधारित होती हैं जो ध्वनि की गति से पांच गुना अधिक रफ्तार (Mach 5 से ऊपर) से चलती हैं। भारत ने जो मिसाइल विकसित की है, वह Mach 6 यानी लगभग 7,400 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से उड़ान भरने में सक्षम है। इतनी रफ्तार से चलने वाली मिसाइलें दुश्मन की रडार पकड़ से बाहर रहती हैं और पारंपरिक एयर डिफेंस सिस्टम इन्हें रोक नहीं पाते।
भारत की तकनीकी उपलब्धि
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) ने हाल में ओडिशा के डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम टेस्ट रेंज से उड़ान भरी। इस परीक्षण में मिसाइल ने न केवल उच्च गति प्राप्त की, बल्कि अपने दिशा‑निर्देशन, ऊंचाई नियंत्रण और स्क्रैमजेट इंजन की कार्यकुशलता भी सिद्ध की।
रणनीतिक बढ़त: चीन और पाकिस्तान पर नजर
भारत की इस उपलब्धि का सीधा असर क्षेत्रीय संतुलन पर पड़ेगा। चीन जहां पहले ही DF-17 और DF-27 जैसे हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल्स पर काम कर रहा है, वहीं भारत ने बहुत सीमित संसाधनों में यह तकनीक आत्मनिर्भर रूप से विकसित की है। पाकिस्तान के पास अभी इस स्तर की कोई हाइपरसोनिक प्रणाली नहीं है, जिससे भारत को सामरिक बढ़त मिलती है।
भविष्य की योजना: BrahMos-II और उससे आगे
भारत अब BrahMos-II जैसी हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलों के विकास की ओर अग्रसर है। यह मिसाइल Mach 7 की गति तक उड़ान भरने में सक्षम होगी। इसके अलावा DRDO "हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल" (HGV-202F) और "लॉन्ग रेंज एंटी शिप मिसाइल" (LRAShM) जैसी परियोजनाओं पर भी काम कर रहा है, जो आने वाले 2-3 वर्षों में परीक्षण के लिए तैयार होंगी।
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