क्यों हो रहा है स्कूलों का विलय?
बेसिक शिक्षा विभाग के अनुसार, जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या 50 से कम है, उनकी पढ़ाई पर अपेक्षित असर नहीं हो रहा है। शिक्षकों की संख्या अधिक लेकिन छात्र कम होने से संसाधनों का अपव्यय हो रहा है। ऐसे में सरकार अब इन स्कूलों को पास के बड़े स्कूलों में मर्ज करने की प्रक्रिया में जुट गई है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि जिन स्कूलों का विलय किया जाएगा, उनका स्थान ऐसा हो जहां छात्रों को स्कूल आने-जाने में किसी भौगोलिक बाधा जैसे नदी, नाला, रेलवे ट्रैक या हाईवे का सामना न करना पड़े।
सरकार का तर्क: बेहतर शिक्षा, साझा संसाधन
राज्य सरकार और शिक्षा विभाग का कहना है कि यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP-2020) और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2020 (NCF-2020) के तहत लिया गया है, जिसका उद्देश्य है स्कूलों के बीच सहयोग, समन्वय और संसाधनों का साझा उपयोग। इस नीति के तहत सरकार हर जिले में एक मुख्यमंत्री अभ्युदय कंपोजिट विद्यालय (कक्षा 1 से 8) और एक मुख्यमंत्री मॉडल कंपोजिट स्कूल (कक्षा 1 से 12) स्थापित कर रही है। इन स्कूलों को आधुनिक सुविधाओं से युक्त बनाया जा रहा है।
शिक्षकों की चिंता: पद होंगे कम, भर्तियों पर असर
हालांकि, इस योजना से शिक्षकों के पदों की संख्या में भारी कटौती तय मानी जा रही है। यदि एक स्कूल बंद होता है या मर्ज किया जाता है, तो वहां के शिक्षकों की आवश्यकता खत्म हो सकती है या उन्हें अन्य स्कूलों में समायोजित किया जा सकता है। इसका सीधा असर नई शिक्षक भर्तियों पर भी पड़ेगा, जिससे हजारों युवाओं की नौकरी की उम्मीदों को झटका लग सकता है। शिक्षक संघ पहले ही इसका विरोध कर चुका है, उनका कहना है कि सरकार को शिक्षा सुधार की आड़ में रोजगार के अवसरों को खत्म नहीं करना चाहिए।
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