बता दें की ब्रह्मोस-NG (Next Generation) फिलहाल डेवलपमेंट फेज में है और उम्मीद है कि यह प्रोजेक्ट 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत तक पूरा हो जाएगा। मीडिया रिपोर्ट्स के के मुताबिक, यह मिसाइल पूरी तरह ऑपरेशनल होने के बाद भारतीय वायुसेना के राफेल लड़ाकू विमानों के साथ इंटिग्रेट की जा सकती हैं।
क्या है ब्रह्मोस-NG की खासियत?
ब्रह्मोस-NG को पहले से मौजूद ब्रह्मोस मिसाइल से कई मायनों में बेहतर और घातक बनाया जा रहा है। यह हल्की, स्लीक (पतली और एयरोडायनामिक डिजाइन) और ज्यादा फुर्तीली होगी। इसके कम वजन का सीधा फायदा यह होगा कि फाइटर जेट एकसाथ ज्यादा मिसाइलें लेकर उड़ान भर सकेंगे, जिससे युद्ध की स्थिति में स्ट्राइक कैपेसिटी में जबरदस्त इजाफा होगा।
ब्रह्मोस-NG की रफ्तार भी पुराने वैरिएंट के बराबर — यानी मैक 3 (तीन गुना ध्वनि की गति) तक होगी, लेकिन यह तेजी से लॉन्च और सटीक निशाना लगाने में और भी सक्षम होगी। इसके अलावा, इसे एयरफोर्स के अलावा नेवी और आर्मी प्लेटफॉर्म्स से भी लॉन्च किया जा सकेगा, जिससे यह ट्राई-सर्विस वेपन सिस्टम बन जाएगा।
Air Force ने दिया बड़ा ऑर्डर
ब्रह्मोस-NG की क्षमता को देखते हुए भारतीय वायुसेना ने DRDO को 400 मिसाइलों का ऑर्डर दिया है, जिसकी कुल लागत लगभग ₹8000 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इस ऑर्डर से साफ है कि वायुसेना इस मिसाइल को अपने भविष्य के स्ट्राइक मिशनों की रीढ़ मान रही है।
चीन पर पड़ेगा सीधा असर
भारत की यह नई मारक क्षमता पड़ोसी देश चीन के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। ब्रह्मोस-NG की एयरबॉर्न तैनाती से चीन के खिलाफ भारत की स्ट्रैटजिक एडवांटेज में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी, खासकर लद्दाख और अरुणाचल जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में। विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रह्मोस-NG की तैनाती के बाद भारत को एक ऐसा स्टैंडऑफ वेपन मिलेगा, जिससे वह दुश्मन के ठिकानों को बिना सीमा पार किए ही नेस्तनाबूद कर सकेगा।
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