नई दिल्ली। भारत की ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल दुनिया की सबसे तेज़ और घातक मिसाइलों में से एक मानी जाती है। इसकी गति Mach 2.8 से ऊपर है, यानी ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना तेज। यह मिसाइल कम ऊंचाई पर उड़ान भरती है, जिससे इसे रडार से पकड़ना मुश्किल हो जाता है। हाल ही में हुए "ऑपरेशन सिंदूर" के दौरान भारतीय वायुसेना ने ब्रह्मोस का प्रयोग करते हुए पाकिस्तान के कई एयरबेस और रणनीतिक ठिकानों को निशाना बनाया।
इस ऑपरेशन में पाकिस्तान ने चीन से प्राप्त अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम — जैसे HQ-16, HQ-9P और YLC-8E राडार — का इस्तेमाल करने की कोशिश की, लेकिन ये सभी ब्रह्मोस को न रोक सके और न ट्रैक कर सके। रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान की एयर डिफेंस पूरी तरह निष्क्रिय रही, जिससे कई सामरिक ठिकानों को भारी नुकसान पहुंचा।
चीन की तकनीक पर सवाल
पाकिस्तान ने पिछले कुछ वर्षों में अरबों डॉलर खर्च कर चीन से एयर डिफेंस सिस्टम खरीदे हैं। लेकिन जब असली युद्ध जैसी स्थिति सामने आई, तो ये सिस्टम प्रतिक्रिया तक नहीं दे पाए। इस घटना ने चीन की मिलिट्री टेक्नोलॉजी की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
अमेरिका के रक्षा विशेषज्ञों ने भी स्वीकार किया कि ब्रह्मोस जैसी मिसाइल के सामने वर्तमान चीनी प्रणालियाँ कारगर नहीं हैं। इससे पाकिस्तान और चीन दोनों की सामरिक रणनीति पर गहरा असर पड़ा है। भारत अब ब्रह्मोस मिसाइल को और भी घातक बना रहा हैं।
वैश्विक प्रतिक्रिया और पाकिस्तान का नया झुकाव
ब्रह्मोस की इस सफलता के बाद पाकिस्तान अब अपनी रक्षा नीति की समीक्षा कर रहा है। खबरों के मुताबिक, वह अब जर्मनी की IRIS-T SLM और इटली की CAMM-ER जैसी पश्चिमी एंटी-एयर मिसाइल प्रणालियों की तरफ झुकाव दिखा रहा है। खासतौर पर IRIS-T ने यूक्रेन युद्ध में खुद को कारगर साबित किया है। यह रणनीतिक बदलाव संकेत देता है कि पाकिस्तान को अब चीन की सैन्य तकनीक पर भरोसा नहीं रहा।
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