भारत और रूस बनाएंगे हाइपरसोनिक मिसाइल

नई दिल्ली। भारत की रक्षा क्षमताएं अब एक नए युग की ओर बढ़ रही हैं। ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल ने पहले ही दुनिया को भारत की तकनीकी और सामरिक ताकत का अहसास करा दिया था, और अब भारत उस दिशा में अग्रसर हो चुका है जो भविष्य के युद्धों की परिभाषा बदलने वाला है — हाइपरसोनिक मिसाइल टेक्नोलॉजी। भारत और रूस मिलकर ब्रह्मोस हाइपरसोनिक मिसाइल (जिसे अनौपचारिक रूप से ब्रह्मोस-II कहा जा रहा है) पर काम शुरू कर चुके हैं। इस परियोजना की नींव अब रखी जा चुकी है।

ब्रह्मोस से ब्रह्मोस-II तक: एक तकनीकी छलांग

ब्रह्मोस-I मिसाइल, जो कि भारत-रूस की संयुक्त परियोजना है, पहले से ही दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों में शामिल है। Mach 3.5 की रफ्तार, लो-एल्टिट्यूड उड़ान और 'फायर एंड फॉरगेट' जैसे आधुनिक फीचर्स ने इसे भारत का अचूक और विश्वसनीय हथियार बना दिया है। यह मिसाइल थल, वायु, समुद्र और पनडुब्बी से लॉन्च की जा सकती है।

लेकिन अब ब्रह्मोस-II इस विरासत को नई ऊंचाई देने जा रहा है। अनुमान है कि इसकी रफ्तार Mach 5 से Mach 8 तक होगी — जो इसे हाइपरसोनिक श्रेणी में ला देता है। हाइपरसोनिक मिसाइलें इतनी तेज होती हैं कि मौजूदा एयर डिफेंस सिस्टम्स के लिए इन्हें इंटरसेप्ट कर पाना लगभग नामुमकिन होता है। यहां तक कि इजरायल का आयरन डोम या रूस का S-500 जैसे उन्नत प्रणालियां भी ऐसी मिसाइलों के आगे कमजोर साबित हो सकती हैं।

स्क्रैमजेट टेक्नोलॉजी और बढ़ी हुई रेंज

ब्रह्मोस-II में स्क्रैमजेट (Scramjet) इंजन का इस्तेमाल होगा — यह इंजन वातावरण से ऑक्सीजन खींचकर ईंधन जलाता है, जिससे मिसाइल को लंबी दूरी तक उच्च रफ्तार से उड़ने की क्षमता मिलती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ब्रह्मोस-II की रेंज 1500 किलोमीटर तक हो सकती है, जो ब्रह्मोस-I की तुलना में कहीं ज्यादा है।

हल्का डिज़ाइन, व्यापक उपयोग

नई हाइपरसोनिक ब्रह्मोस को हल्का बनाया जा रहा है — लगभग 1.3 टन — ताकि इसे भारत के स्वदेशी लड़ाकू विमानों जैसे तेजस से भी लॉन्च किया जा सके। यह एक बड़ी रणनीतिक उपलब्धि होगी, क्योंकि इससे भारत की एयरफोर्स को ज्यादा लचीलापन और गतिशीलता मिलेगी। इसके अलावा, एक ‘मिनी ब्रह्मोस’ पर भी काम चल रहा है, जो छोटी, हल्की और पोर्टेबल होगी — खासकर वायुसेना के ऑपरेशन्स के लिए डिजाइन की गई है।

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