भारत-रूस की दोस्ती से क्यों चिढ़ता है अमेरिका?

नई दिल्ली। भारत और रूस के रिश्ते दशकों पुराने हैं — शीत युद्ध के दौर से लेकर आज तक यह संबंध सामरिक, कूटनीतिक और आर्थिक दृष्टि से बेहद गहरे और भरोसेमंद रहे हैं। लेकिन जैसे-जैसे वैश्विक भू-राजनीतिक संतुलन बदल रहा है और अमेरिका की चीन-विरोधी रणनीति में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है, वैसे-वैसे वाशिंगटन को भारत-रूस की करीबी दोस्ती 'चुभने' लगी है। आखिर अमेरिका को क्यों यह संबंध खटकते हैं? इस रिपोर्ट में हम इस प्रश्न का विश्लेषण करेंगे।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

रूस (पूर्व में सोवियत संघ) ने भारत को तब समर्थन दिया था जब पश्चिमी देश पाकिस्तान के साथ खड़े थे। चाहे 1971 का भारत-पाक युद्ध हो या परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग — रूस ने भारत का साथ दिया। इसी भरोसे का नतीजा है कि आज भी रूस भारत को रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है।

अमेरिका की चिंता: सामरिक और रणनीतिक कारण

1. रक्षा सौदे और S-400 प्रणाली: भारत ने रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदी, जो अमेरिका की सुरक्षा नीतियों के खिलाफ जाती है। अमेरिका ने तुर्की को इसके लिए सजा भी दी थी, लेकिन भारत पर वैसी कार्रवाई नहीं कर सका। फिर भी, अमेरिका इस बात से असहज है कि उसका "रणनीतिक साझेदार" रूस से ऐसी तकनीक खरीद रहा है जो NATO के लिए खतरा मानी जाती है।

2. यूक्रेन युद्ध और तटस्थ भारत: रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने रूस की खुलकर निंदा नहीं की, न ही प्रतिबंध लगाए। इसके विपरीत, भारत ने रूस से सस्ते दरों पर तेल खरीदना जारी रखा। अमेरिका चाहता था कि भारत पश्चिमी देशों की लाइन पर चले, लेकिन भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को प्राथमिकता दी।

3. QUAD बनाम BRICS का समीकरण: अमेरिका चाहता है कि भारत Indo-Pacific क्षेत्र में चीन को संतुलित करने में सक्रिय भूमिका निभाए, विशेषकर QUAD जैसे मंचों पर। लेकिन भारत का BRICS (जिसमें रूस और चीन भी शामिल हैं) में भी सक्रिय रहना अमेरिका को भ्रमित करता है।

भारत की नीति: संतुलन बनाना

भारत की विदेश नीति का मूलमंत्र "रणनीतिक स्वायत्तता" है। भारत न तो किसी एक खेमे में शामिल होना चाहता है और न ही दबाव में निर्णय लेना चाहता है। अमेरिका को यह समझना होगा कि भारत की रूस के साथ दोस्ती, किसी के खिलाफ नहीं बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों के लिए है।

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