टाइफून मिसाइल: अमेरिका का रणनीतिक संदेश
टाइफून MRC सिस्टम अमेरिकी सेना की अत्याधुनिक मिसाइल तकनीक है, जिसे खासतौर पर लंबी दूरी पर समुद्री लक्ष्यों को सटीकता से ध्वस्त करने के लिए तैयार किया गया है। एक टाइफून बैटरी में चार लॉन्चर होते हैं और प्रत्येक लॉन्चर चार मिसाइलें ले जा सकता है। यानी कुल 16 मिसाइलों की एकजुट मारक क्षमता इसे बेहद घातक बनाती है। यह वही लॉन्चर तकनीक है जो अमेरिकी नौसेना के कई युद्धपोतों पर भी इस्तेमाल की जाती है – MK-41 वर्टिकल लॉन्च सिस्टम।
इस परीक्षण का एक बड़ा संदेश यह है कि अमेरिका अब केवल अपने देश में ही नहीं, बल्कि अपने सहयोगी देशों की धरती पर भी ऐसे सिस्टम की तैनाती और परीक्षण की नीति अपना रहा है – यह सीधा-सीधा चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की रणनीति मानी जा रही है।
चीन की प्रतिक्रिया और बढ़ती चिंता
चीन ने पहले ही संकेत दिए हैं कि वह अपने पड़ोस में इस तरह की मिसाइलों की तैनाती को उत्तेजक मानता है। खासतौर पर जब इन मिसाइलों की पहुंच चीन के कृत्रिम द्वीपों और तटीय शहरों तक हो सकती है, तब यह बीजिंग के लिए रणनीतिक खतरे की तरह देखा जाता है। फिलीपींस में पहले से ही टाइफून की तैनाती की योजना ने चीन की चिंता को और बढ़ाया था, और अब ऑस्ट्रेलिया में परीक्षण से उसका असंतोष और अधिक गहराने की आशंका है।
चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) ने हाल के महीनों में दक्षिण चीन सागर और आसपास के क्षेत्रों में आक्रामक रुख अपनाया है। बिना सूचना के लाइव फायर अभ्यास और कृत्रिम द्वीपों पर सैन्य बुनियाद मजबूत करना, इस क्षेत्र में उसकी मंशा को दर्शाता है। ऐसे में अमेरिका और उसके सहयोगियों की ओर से किया गया यह शक्ति प्रदर्शन, सीधे तौर पर चीन के प्रभाव क्षेत्र में घुसने जैसा है।
हिंद-प्रशांत में बढ़ती हथियारों की दौड़?
अमेरिका का यह कदम एक नई हथियारों की दौड़ की शुरुआत बन सकता है। चीन पहले ही चेतावनी दे चुका है कि वह अपने सुरक्षा हितों के खिलाफ किसी भी कदम का ‘जवाब’ देगा। यदि अमेरिका अपने मिसाइल सिस्टम को जापान, दक्षिण कोरिया या अन्य रणनीतिक साझेदारों के साथ भी साझा करता है, तो यह पूरे हिंद-प्रशांत में सैन्य तनाव की नई परतें जोड़ सकता है।
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