सरकार ने इस परियोजना को मई 2022 में हरी झंडी दी थी और सितंबर 2023 में 21,700 करोड़ रुपये के बजट को मंजूरी दी गई। यह प्रणाली भारतीय वायुसेना और नौसेना के लिए तैयार की जा रही है और प्रारंभिक चरण में वायुसेना के लिए 5 स्क्वाड्रन तैनात किए जाएंगे।
तीन स्तरीय सुरक्षा प्रणाली
प्रोजेक्ट कुशा में तीन रेंज की इंटरसेप्टर मिसाइलें शामिल हैं: M1 मिसाइल, जिसकी मारक क्षमता 150 किलोमीटर तक है। M2 मिसाइल, जो 250 किलोमीटर की दूरी तक लक्ष्य भेद सकती है। M3 मिसाइल, जो 350 से 400 किलोमीटर तक टारगेट को इंटरसेप्ट करने में सक्षम है।
ये सभी मिसाइलें दुश्मन के लड़ाकू विमानों, ड्रोन, क्रूज मिसाइल और हाइपरसोनिक हथियारों को नष्ट करने में सक्षम हैं। इनकी डिजाइन में 250 मिमी की समान "किल व्हीकल" का प्रयोग किया गया है, जबकि रेंज के अनुसार बूस्टर की लंबाई अलग-अलग रखी गई है।
कैनिस्टर आधारित सुरक्षित लॉन्चिंग प्रणाली
मिसाइलों को सुरक्षित रखने और त्वरित लॉन्च के लिए DRDO ने दो प्रकार के कैनिस्टर विकसित किए हैं: टाइप-1 कैनिस्टर — M1 मिसाइल के लिए डिजाइन किया गया, जो हल्का और मोबाइल है। इसमें झटकों और कंपन से सुरक्षा के लिए विशेष डैम्पर और इसोलेटर लगे हैं।
टाइप-2 कैनिस्टर — M2 और M3 के लिए साझा रूप से उपयोग किया जाने वाला कैनिस्टर है, जिसमें स्लाइडिंग और रीपोजिशनिंग मैकेनिज्म है। इसके निर्माण में FRP, हनीकॉम्ब पैनल और रबर लाइनिंग जैसी उन्नत सामग्री का प्रयोग किया गया है।
भविष्य की तकनीक से लैस होगा सिस्टम
प्रोजेक्ट कुशा को भारतीय वायुसेना के Integrated Air Command and Control System (IACCS) से जोड़ा जाएगा, जिससे यह रियल-टाइम डेटा प्रोसेसिंग और लक्ष्य निर्धारण में सक्षम होगा। DRDO भविष्य में इसमें कई अत्याधुनिक तकनीकों को जोड़ने की योजना बना रहा है, जैसे: AI आधारित निर्णय प्रणाली, ड्यूल सीकर टेक्नोलॉजी (रडार + इन्फ्रारेड), हाइपरसोनिक हथियारों के विरुद्ध जवाबी क्षमता। इससे यह प्रणाली चीन की DF-21D जैसी मिसाइलों का भी प्रभावी रूप से मुकाबला कर सकेगी।
आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक सशक्त कदम
भारत अब विदेशी एयर डिफेंस सिस्टम पर निर्भर नहीं रहेगा। प्रोजेक्ट कुशा न केवल स्वदेशी तकनीक को बढ़ावा देगा, बल्कि रक्षा क्षेत्र में "आत्मनिर्भर भारत" के विजन को भी मजबूत करेगा। यह परियोजना आने वाले वर्षों में भारत की सुरक्षा संरचना को नया आयाम दे सकती है।
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