भारत अब स्वदेशी 'AWACS' बनाएगा, सरकार की मंजूरी

नई दिल्ली। भारत ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक और बड़ा कदम उठाया है। केंद्र सरकार ने स्वदेशी ‘एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम’ (AWACS) प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी है, जिसकी अनुमानित लागत लगभग 20,000 करोड़ रुपये है। इस परियोजना को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) भारतीय कंपनियों और विदेशी साझेदारों के साथ मिलकर पूरा करेगा। इससे न केवल भारतीय वायुसेना की निगरानी क्षमता में क्रांतिकारी सुधार आएगा, बल्कि भारत उन गिने-चुने देशों की सूची में शामिल हो जाएगा जो अपने दम पर यह तकनीक विकसित कर सकते हैं।

क्या है AWACS और क्यों है यह महत्वपूर्ण?

AWACS यानी एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम एक ऐसा एयरक्राफ्ट होता है जो आसमान में उड़ते हुए दुश्मन की गतिविधियों पर दूर से ही नजर रख सकता है। यह एक अत्याधुनिक रडार प्रणाली से लैस होता है जो 360 डिग्री कवरेज प्रदान करता है और हवा, जमीन या समुद्र से आने वाले खतरों का समय रहते पता लगा सकता है। इसकी मदद से वायुसेना को ऑपरेशनल फैसले तेजी से लेने में मदद मिलती है, जिससे किसी भी संभावित हमले का जवाब तुरंत दिया जा सकता है।

क्या होगा भारत का स्वदेशी AWACS सिस्टम?

इस नए स्वदेशी प्रोजेक्ट के तहत छह एयरबस A321 विमानों को विशेष निगरानी विमानों में बदला जाएगा। इनमें AESA रडार (Active Electronically Scanned Array) लगाया जाएगा और एक विशेष 'डॉर्सल फिन' एंटीना इंस्टॉल किया जाएगा जो विमान को हर दिशा में निगरानी की क्षमता देगा। यह प्लेटफॉर्म पूरी तरह से भारतीय मिशन कंट्रोल सिस्टम से लैस होगा। इस पूरे सिस्टम को ‘नेत्र MkII’ नाम दिया गया है, जो DRDO द्वारा विकसित मौजूदा ‘नेत्र’ एयरक्राफ्ट का अपग्रेडेड वर्जन होगा।

भारत की वर्तमान स्थिति और इस प्रोजेक्ट की ज़रूरत

फिलहाल भारतीय वायुसेना के पास तीन IL-76 आधारित फाल्कन AWACS सिस्टम हैं, जो इजराइल और रूस के सहयोग से बने थे। इनके साथ-साथ DRDO द्वारा विकसित तीन छोटे 'नेत्र' विमान भी सेवा में हैं। हालांकि, इन पुराने प्लेटफॉर्म्स की सीमाएं हैं – चाहे वह रखरखाव की दिक्कत हो या अपग्रेड की जटिलताएं। ऐसे में एक पूरी तरह स्वदेशी, आधुनिक और लंबे समय तक टिकाऊ समाधान का निर्माण समय की मांग बन चुका था।

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