1. चीन ने किया आर्थिक सुधारों का साहसिक फैसला
1978 में देंग शियाओपिंग के नेतृत्व में चीन ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। कम्युनिस्ट विचारधारा से बाहर निकलते हुए उन्होंने "सोशलिस्ट मार्केट इकॉनमी" का मॉडल अपनाया। निजी निवेश, विदेशी पूंजी और प्रतिस्पर्धा को जगह दी गई। ये बदलाव चीन की अर्थव्यवस्था के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुए।
2. निर्माण और निर्यात बना विकास की रीढ़
चीन ने अपने उद्योगों को सशक्त बनाकर खुद को दुनिया की 'फैक्ट्री' बना लिया। सस्ते श्रम, बड़े पैमाने पर उत्पादन और सरकारी सहयोग ने चीन को वैश्विक उत्पादन का केंद्र बना दिया। आज दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर खिलौनों तक, 'मेड इन चाइना' हर जगह दिखता है।
3. बुनियादी ढांचे पर भारी निवेश
सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों और एयरपोर्ट जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर पर चीन ने अभूतपूर्व निवेश किया। इससे व्यापार में तेजी आई और निवेशकों को स्थिरता और भरोसा मिला। जबकि भारत में कई योजनाएं राजनीतिक और नौकरशाही अड़चनों में उलझ जाती हैं।
4. शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट पर फोकस
चीन ने तकनीकी शिक्षा और अनुसंधान को प्राथमिकता दी। इसी का नतीजा है कि आज वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ग्रीन एनर्जी और इलेक्ट्रिक वाहनों में अग्रणी देशों में शामिल है।
5. राजनीतिक स्थिरता और त्वरित निर्णय
एकदलीय शासन व्यवस्था ने चीन को निर्णय लेने में गति दी। नीतियां जल्दी बनती हैं और ज़मीन पर तेजी से उतरती हैं। वहीं भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के कारण निर्णयों में अक्सर देरी होती है।
भारत के लिए सबक क्या है?
भारत की जनसंख्या, संसाधन और प्रतिभा किसी से कम नहीं हैं। लेकिन सुधारों की गति, पारदर्शिता और कार्यान्वयन की कुशलता में अभी भी सुधार की ज़रूरत है। भारत को भी शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और रोजगार सृजन पर गंभीरता से ध्यान देना होगा।
0 comments:
Post a Comment