क्यों खास है यह योजना?
इस योजना की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह पारंपरिक भूमि अधिग्रहण मॉडल को पूरी तरह से बदल देती है। अब सरकार जमीन जबरन अधिग्रहित नहीं करेगी, बल्कि भूमि मालिकों को विकास में साझेदार बनाया जाएगा। वे अपनी जमीन को योजना में देंगे और बदले में उन्हें 55% विकसित जमीन वापस मिलेगी, जिसे वे अपनी इच्छा से बेच सकते हैं या उपयोग कर सकते हैं।
आधुनिक टाउनशिप, बिना अधिग्रहण के
दिल्ली-मुंबई जैसी टाउनशिप अब बिहार में भी देखी जा सकेंगी — लेकिन एक बड़े फर्क के साथ। यहां सरकार जमीन की मालिक नहीं बनेगी, बल्कि भूमि पुनर्गठन कर उसे मालिकों और डेवलपर्स के बीच वितरित किया जाएगा। 30% जमीन सामाजिक अवसंरचना के लिए रखी जाएगी (जैसे सड़क, पार्क, हॉस्पिटल आदि), 15% जमीन सरकार के पास बिक्री के लिए रहेगी, 55% भूमि मालिकों को वापस दी जाएगी, 100 हेक्टेयर न्यूनतम क्षेत्रफल की थीम-बेस्ड टाउनशिप बनाई जाएगी। कुछ मामलों में यह सीमा घटाकर 10 हेक्टेयर भी की जा सकती है।
शहरों का नाम नहीं, सोच बदलेगी
इस योजना की शुरुआत पटना से की जाएगी, लेकिन इसके तहत सभी प्रमंडलीय मुख्यालयों को शामिल किया गया है। यानी, समस्तीपुर से लेकर भागलपुर तक, बिहार के हर कोने में नया चेहरा उभरने वाला है। यह मॉडल न केवल भीड़भाड़ वाले पुराने शहरों से दबाव कम करेगा, बल्कि निवेश और रोज़गार के नए रास्ते भी खोलेगा।
ज़मीन के इस्तेमाल का स्पष्ट खाका
शहरी योजना के तहत भूमि उपयोग का प्रतिशत पहले से तय कर दिया गया है:
सड़क निर्माण: अधिकतम 22%
कमजोर वर्गों के लिए आवास: 3%
सामाजिक संरचना (पार्क, थाना, अस्पताल आदि): 5%
भूमि मालिकों को लौटाई जाने वाली ज़मीन: 55%
डेवलपर को विक्रय योग्य भूमि: 15%
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