क्या है 'घरौनी कानून'?
अब तक गांवों में रह रहे लोग अपनी आबादी की जमीन पर मकान तो बना लेते थे, लेकिन उनके पास जमीन का वैध स्वामित्व प्रमाण (घरौनी) नहीं होता था। जो दस्तावेज उपलब्ध होते थे, वे शासनादेशों के आधार पर तैयार होते थे और कानूनी रूप से मान्य नहीं माने जाते थे। इस कारण ग्रामीण लोग अपने ही मकानों पर लोन जैसी सुविधाओं से वंचित रह जाते थे।
बता दें की सरकार अब इसे एक वैधानिक स्वरूप देने जा रही है। नया कानून बनने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में अविवादित जमीनों पर वैध स्वामित्व अधिकार तय किया जा सकेगा, जिससे लोग बैंकों से ऋण ले सकेंगे और अपने घरों को बेहतर बना सकेंगे।
कैसे मिलेगा मालिकाना हक?
1 .भूमि की पहचान: लेखपाल उस भूमि की पहचान करेगा, जिस पर कोई विवाद नहीं है।
2 .राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज: कानूनगो उस भूमि के मालिकाना हक को राजस्व अभिलेखों में दर्ज करेगा।
3 .कानूनी आधार: उत्तराधिकार, वसीयत, गिफ्ट डीड, सरकारी नीलामी, न्यायालय की डिक्री जैसे विभिन्न आधारों पर भी घरौनी तैयार की जा सकेगी।
4 .नामांतरण और विभाजन: अगर किसी जमीन में वारिसों के बीच विभाजन होता है, तो उसके अनुसार भी नए मालिक के नाम को दर्ज किया जाएगा।
विवादित भूमि पर क्या होगा?
अगर किसी भूमि पर विवाद है, तो लेखपाल, कानूनगो और तहसीलदार मिलकर रिपोर्ट एसडीएम को देंगे। एसडीएम तय करेगा कि वह जमीन विवादित है या नहीं। यदि जमीन को विवादित घोषित किया गया, तो फिर उस मामले में केवल सिविल कोर्ट का आदेश ही मान्य होगा। राजस्व विभाग उसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा।
अन्य महत्वपूर्ण बातें:
लिपिकीय त्रुटियों में सुधार की सुविधा इस कानून में दी जाएगी, जिससे किसी नाम, पता या टेलीफोन नंबर जैसी गलतियों को दुरुस्त किया जा सकेगा। यह कानून गांवों की आबादी भूमि को कानूनी पहचान देगा, जिससे न केवल घर बनाने की राह आसान होगी, बल्कि संपत्ति की खरीद-फरोख्त और विरासत के मामलों में भी पारदर्शिता आएगी।
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