हाल के वर्षों में ब्रिक्स का विस्तार, डॉलर के वर्चस्व को चुनौती, और वैश्विक दक्षिण की आवाज बनने की इसकी कोशिशों ने यह सवाल खड़ा कर दिया है की आर्थिक मोर्चे पर सुपरपावर बनने की दौड़ में कौन आगे है नाटो या ब्रिक्स?
नाटो: परंपरागत आर्थिक महाशक्ति
नाटो (NATO) की स्थापना 1949 में सुरक्षा गठबंधन के रूप में हुई थी, लेकिन आज इसके सदस्य देश वैश्विक अर्थव्यवस्था के सबसे प्रभावशाली स्तंभ हैं। अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देश न केवल सैन्य शक्ति में अग्रणी हैं, बल्कि आर्थिक स्तर पर भी दुनिया के सबसे बड़े निवेशक और बाजार नियंत्रक हैं।
कुल GDP (2025): $47 ट्रिलियन से अधिक
वैश्विक व्यापार में हिस्सा: 45% से भी अधिक
तकनीकी नवाचार में अग्रणी: AI, रक्षा, हेल्थटेक
ब्रिक्स: उभरती अर्थव्यवस्थाओं की नई शक्ति
ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से शुरू होकर अब ईरान, यूएई, मिस्र, इथियोपिया जैसे देश भी ब्रिक्स में शामिल हो गए हैं। यह समूह विश्व की लगभग 45% आबादी और 30% से अधिक वैश्विक GDP का प्रतिनिधित्व करता है। ब्रिक्स की सबसे बड़ी ताकत है जनसंख्या, संसाधन, और विकास की गति।
कुल GDP (2025): $29 ट्रिलियन (और बढ़ती हुई)
प्राकृतिक संसाधनों पर पकड़: तेल, गैस, कोयला, दुर्लभ खनिज
विश्व व्यवस्था में बदलाव की आहट
जहां नाटो आज भी वैश्विक वित्तीय संस्थानों (IMF, World Bank, SWIFT) पर नियंत्रण रखता है, वहीं ब्रिक्स ने "New Development Bank" और स्थानीय मुद्रा व्यापार समझौते के ज़रिए एक वैकल्पिक प्रणाली की नींव रख दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में यदि ब्रिक्स साझा मुद्रा, तकनीकी विकास और नीति समन्वय में सफल होता है, तो यह पश्चिमी आर्थिक प्रभुत्व को सीधी चुनौती देगा।
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