भारत-अमेरिका के बीच युद्धाभ्यास, चीन को टेंशन!

नई दिल्ली। भारत और अमेरिका ने अलास्का में अपने अब तक के सबसे बड़े संयुक्त सैन्य अभ्यास की शुरुआत की है। यह युद्धाभ्यास 1 से 14 सितंबर तक चलेगा, जिसमें भारत की मद्रास रेजिमेंट के सैनिक भाग ले रहे हैं। यह कदम दोनों देशों के बीच बढ़ते हुए रक्षा सहयोग का प्रतीक है, जो पिछले दो दशकों में मजबूती से विकसित हुआ है।

युद्धाभ्यास की विशेषताएं और रणनीतिक महत्व

इस अभ्यास में तोपखाने, विमानन, और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों का समन्वित उपयोग किया जा रहा है, जिससे दोनों देशों की सेनाएं अधिक प्रभावी और समन्वित रूप से कार्य करने में सक्षम होंगी। संयुक्त अभ्यास न केवल सैनिक कौशल को निखारता है, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा संरचनाओं को भी सुदृढ़ करता है, खासकर जब चीन जैसे बड़े पड़ोसी की गतिविधियों को ध्यान में रखा जाए।

युद्धाभ्यास और क्वॉड देशों की भागीदारी

अलास्का के बाद भारत और अमेरिका के बीच मालाबार नौसेना युद्धाभ्यास की भी योजना है, जिसमें क्वॉड समूह के सभी सदस्य देश। भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल होंगे। यह अभ्यास भारतीय महासागर क्षेत्र में सामरिक संतुलन बनाए रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। चीन की बढ़ती समुद्री गतिविधियों और क्षेत्रीय प्रभुत्व के प्रयासों के मद्देनजर यह कदम एक स्पष्ट संदेश है कि क्वॉड देश मिलकर क्षेत्र की शांति और स्थिरता सुनिश्चित करना चाहते हैं।

रक्षा सहयोग और आर्थिक सौदे

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग केवल युद्धाभ्यास तक सीमित नहीं है। दोनों देशों ने कई महंगे और तकनीकी रूप से उन्नत हथियार प्रणालियों के सौदे किए हैं। उदाहरण के तौर पर, तेजस मार्क-1ए फाइटर विमानों के इंजन की डिलीवरी में देरी के बावजूद, दोनों पक्ष एक अरब डॉलर के 113 जीई इंजन सौदे पर सहमत हुए हैं। इसके अलावा, 3.8 बिलियन डॉलर की डील के तहत भारत को MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन मिलेंगे, जो 2029-30 के बीच देश की वायु क्षमता में वृद्धि करेंगे।

भरोसे और चुनौतियां

हालांकि दोनों देशों के बीच विश्वास की मजबूती बनी हुई है, लेकिन कुछ टकराव भी देखे गए हैं। युद्धाभ्यास और रक्षा सहयोग के बावजूद अमेरिका के रुख में कुछ उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहे हैं, जिससे भारत को वैकल्पिक साझेदारों और घरेलू रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत महसूस हो रही है। भारत ने पहले ही देश में लड़ाकू विमानों के इंजन निर्माण का काम शुरू कर दिया है, जिससे आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है।

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