चीन की घेरेबंदी में भारत सबसे आगे: इन देशों से बढ़ती नजदीकियां!

नई दिल्ली। एक समय था जब भारत की विदेश नीति “गुटनिरपेक्षता” पर केंद्रित थी, लेकिन अब एशिया में बदलते सामरिक समीकरणों के बीच भारत ने खुद को रणनीतिक रूप से पुनः परिभाषित करना शुरू कर दिया है। भारत अब सिर्फ अपने सीमित पड़ोसी क्षेत्रों तक सीमित नहीं, बल्कि इंडो-पैसिफिक (हिंद-प्रशांत) क्षेत्र में एक प्रभावशाली ताकत के रूप में उभर रहा है। और इस पूरी रणनीति के केंद्र में है — चीन की घेरेबंदी।

फिलीपींस: सामुद्रिक साझेदारी

फिलीपींस और भारत के बीच हालिया द्विपक्षीय वार्ता ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि दोनों देश अब केवल कूटनीतिक साझेदार नहीं, बल्कि सामरिक भागीदार भी बन चुके हैं। राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर के भारत दौरे के दौरान 13 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए — जिनमें रक्षा, समुद्री सुरक्षा और रणनीतिक सहयोग प्रमुख हैं। दक्षिण चीन सागर में भारत-फिलीपींस की संयुक्त गश्त ने चीन को बेचैन कर दिया है। ब्रह्मोस मिसाइल की डील के बाद फिलीपींस भारत से और उन्नत हथियार खरीदने की दिशा में बढ़ रहा है।

ताइवान: रिश्तों में आई मजबूती

भारत अब तक ताइवान के मुद्दे पर सतर्क रहा है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में व्यापारिक और तकनीकी सहयोग तेजी से बढ़ा है। सेमीकंडक्टर उत्पादन में ताइवान की अग्रणी भूमिका भारत के लिए एक अवसर बन चुकी है — खासकर तब, जब भारत चीन से तकनीकी आयात पर अपनी निर्भरता घटाना चाहता है। 2025 में रणनीतिक साझेदारी की दिशा में जो संकेत दिए गए हैं, वे चीन के लिए एक स्पष्ट संदेश हैं — भारत अब ताइवान को सिर्फ ‘एक आर्थिक साथी’ नहीं, बल्कि एक रणनीतिक सहयोगी की दृष्टि से देख रहा है।

जापान: साझा हितों से साझा मोर्चा

भारत और जापान की दोस्ती सिर्फ ऐतिहासिक नहीं, बल्कि रणनीतिक भी है। रक्षा अभ्यास, संयुक्त सैन्य अभ्यास जैसे ‘मालाबार’ और ‘धर्म गार्जियन’ ने दोनों देशों को और करीब लाया है। ‘जापान-भारत विज़न 2025’ जैसी साझेदारी चीन को स्पष्ट संदेश देती है — भारत और जापान मिलकर एशिया में शक्ति संतुलन बनाने को प्रतिबद्ध हैं। जापान भी चीन के विरोध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन कर रहा है, और इस समन्वय से चीन का रणनीतिक दबदबा सीधे तौर पर चुनौती में है।

वियतनाम: ‘INS कृपाण’ और एक स्पष्ट संदेश

भारत द्वारा वियतनाम को स्वदेशी युद्धपोत INS कृपाण उपहार में देना केवल रक्षा सहयोग नहीं, बल्कि चीन को कूटनीतिक चेतावनी भी है। वियतनाम, जो दक्षिण चीन सागर में चीन के खिलाफ सबसे मुखर रहा है, अब भारत के समर्थन से और अधिक आत्मविश्वासी हो रहा है। व्यापार, रक्षा, और सांस्कृतिक साझेदारी के जरिए भारत और वियतनाम ने रणनीतिक साझेदारी को और भी मजबूत किया है।

दक्षिण कोरिया: रक्षा तकनीक से सामरिक साझेदारी

भारत-द. कोरिया रक्षा सहयोग भी एक नए मुकाम पर पहुंच चुका है। भारत की कंपनियाँ अब कोरियाई रक्षा तकनीक के साथ आधुनिक रक्षा प्लेटफॉर्म्स विकसित करने में रुचि दिखा रही हैं। यह सिर्फ आयात-निर्यात नहीं, बल्कि "साझा निर्माण और तकनीक हस्तांतरण" की ओर बढ़ती साझेदारी है। द. कोरिया और भारत की मेल से चीन के खिलाफ एक सशक्त रणनीतिक धुरी बनती दिख रही है।

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