क्या है फैसला?
सरकार ने जिलाधिकारियों को एक आधिकारिक पत्र जारी करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि जाति प्रमाणपत्र के लिए खतियान की शर्त अब अनिवार्य नहीं रहेगी। इस निर्णय से उन परिवारों को सीधा लाभ मिलेगा जिनके पास पुश्तैनी जमीन नहीं है या वे भूमिहीन हैं, लेकिन वे खरवार जाति से संबंध रखते हैं। प्रशासन अब अन्य विकल्पों जैसे दानपत्र, भूमि संबंधी दस्तावेज, आवंटित जमीन के रिकॉर्ड या स्थल निरीक्षण के आधार पर भी प्रमाण पत्र जारी कर सकेगा।
क्यों जरूरी था यह फैसला?
खरवार जाति के लोगों की ओर से लंबे समय से यह शिकायत सामने आ रही थी कि उन्हें अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र बनवाने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। अधिकतर आवेदन खतियान न होने के कारण अस्वीकृत हो जाते थे, जिससे उन्हें सरकारी नौकरियों, छात्रवृत्तियों, आरक्षण और अन्य कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा था।
स्थल निरीक्षण बनेगा प्रमुख आधार
अब अगर आवेदक के पास खतियान या कोई अन्य दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं, तो प्रशासनिक अधिकारी स्थल निरीक्षण और स्थानीय सत्यापन के आधार पर रिपोर्ट तैयार करेंगे। यह रिपोर्ट प्रमाणपत्र जारी करने का आधार बनेगी। हालांकि, इसके लिए ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ काम करना प्रशासन की जिम्मेदारी होगी, ताकि गलत व्यक्ति लाभ न उठा सकें और असली पात्र वंचित न रहें।
किन क्षेत्रों में है इस जाती का असर?
खरवार जाति की प्रमुख आबादी बिहार के भभुआ, रोहतास, बक्सर, भोजपुर, छपरा, सिवान, गोपालगंज, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली और पटना जिलों में है। इन जिलों के सैकड़ों परिवार वर्षों से प्रमाणपत्र के अभाव में सरकारी योजनाओं से वंचित थे। अब यह फैसला उनके लिए उम्मीद की नई किरण बनकर आया है।
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