भारत-रूस रिश्तों में नई गर्माहट, अमेरिका की चिंता बढ़ी?

नई दिल्ली। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा दिसंबर की शुरुआत में भारत आने की पुष्टि ने वैश्विक कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। भारत और रूस के रिश्ते ऐतिहासिक रूप से गहरे रहे हैं, लेकिन मौजूदा वैश्विक परिप्रेक्ष्य में यह दौरा और भी महत्वपूर्ण हो गया है।  खासकर तब, जब अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ रूस के रिश्ते तनावपूर्ण दौर में हैं।

पुतिन ने एक कार्यक्रम के दौरान स्पष्ट किया कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेने भारत आएंगे। यह बयान सिर्फ एक औपचारिक घोषणा नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश भी माना जा रहा है विशेष रूप से अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए, जो रूस को अलग-थलग करने की कोशिशों में लगे हुए हैं।

पुरानी साझेदारी, नए मायने

पुतिन ने भारत के साथ रूस के संबंधों को “विशेष रणनीतिक साझेदारी” करार देते हुए याद दिलाया कि दोनों देशों ने लगभग 15 साल पहले इस संबंध को आधिकारिक रूप से मान्यता दी थी। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को एक “समझदार नेता” कहा, जो पहले अपने देश के हितों को प्राथमिकता देते हैं। यह बयान केवल मित्रता की सराहना नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में उसकी भूमिका को भी मान्यता है। ऐसे समय में जब कई देश अमेरिकी दबाव में रूस से व्यापार कम कर रहे हैं, भारत का रूस के साथ संबंध बनाए रखना वैश्विक राजनीति में संतुलन की मिसाल बन गया है।

तेल, टैरिफ और तनाव

राष्ट्रपति पुतिन ने यह भी उजागर किया कि अमेरिका भारत और चीन पर रूस से तेल आयात कम करने का दबाव बना रहा है। उन्होंने इस पर व्यावसायिक और आर्थिक दृष्टिकोण से बात करते हुए कहा कि अगर सेकेंडरी टैरिफ लगाए जाते हैं, तो इससे वैश्विक तेल कीमतें प्रभावित होंगी, जिसका खामियाजा खुद अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी उठाना पड़ सकता है। इस बयान के जरिए पुतिन ने दोहरा संकेत दिया एक तरफ एशियाई देशों को सहयोग बनाए रखने का आह्वान, और दूसरी तरफ अमेरिका को यह चेतावनी कि उसकी नीतियां वैश्विक अस्थिरता को बढ़ा सकती हैं।

भारत की गरिमा और निर्णायक नेतृत्व

रूसी राष्ट्रपति ने खासतौर पर भारतीय जनता की “राष्ट्रीय गरिमा” की सराहना की। उन्होंने कहा कि भारत ऐसा देश है जो बाहरी दबाव में झुकने वाले निर्णय नहीं लेता, और प्रधानमंत्री मोदी कभी ऐसा कदम नहीं उठाएंगे जो भारत के आत्मसम्मान के खिलाफ हो। यह कथन भारत की विदेश नीति की ‘स्वतंत्रता’ को रेखांकित करता है। चाहे वह रूस से तेल खरीदने का निर्णय हो या वैश्विक मंचों पर अपने रुख को स्पष्ट रखना। भारत अब किसी के दबाव में नहीं, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय ले रहा है।

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