यूपी में 'बिजली उपभोक्ताओं' को बड़ा झटका, तुरंत पढ़ें!

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं के लिए नवंबर की शुरुआत एक नई चिंता लेकर आने वाली है। राज्य में बिजली की दरें तो स्थिर हैं, लेकिन उपभोक्ताओं की जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ने वाला है। दरअसल, आगामी महीने से बिजली बिल में ईंधन अधिभार शुल्क (Fuel Surcharge Adjustment - FSA) बढ़ा दिया गया है। इस बार यह शुल्क 1.83 फीसदी निर्धारित किया गया है, जिसकी वसूली नवंबर माह के बिल में की जाएगी।

82 करोड़ रुपये की अतिरिक्त वसूली

इस नए अधिभार के कारण बिजली कंपनियों को उपभोक्ताओं से करीब 82.11 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि की वसूली होने की उम्मीद है। अक्टूबर महीने में यह शुल्क 1.63 फीसदी कम था, यानी उपभोक्ताओं को थोड़ी राहत मिली थी। लेकिन अब नवंबर में फिर से यह दर बढ़ने से बिजली बिल पहले से अधिक आएंगे।

क्या होता है ईंधन अधिभार शुल्क?

ईंधन अधिभार शुल्क बिजली उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले ईंधन (जैसे कोयला, डीज़ल या गैस) की कीमतों में उतार-चढ़ाव के आधार पर लगाया जाता है। जब इनकी कीमतें बढ़ती हैं, तो बिजली कंपनियां इसका हिस्सा उपभोक्ताओं से वसूलती हैं। इसी को Fuel Surcharge कहा जाता है।

हर महीने की गणना और वसूली का नियम

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा के अनुसार, केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को निर्देशित किया था कि बिजली कंपनियां हर महीने ईंधन अधिभार की गणना कर उपभोक्ताओं से वसूली करें। इसी नियम के तहत उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने भी इसे लागू किया है। हालांकि, उपभोक्ता परिषद इस निर्णय का लगातार विरोध कर रही है। वर्मा का कहना है कि इससे आम लोगों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।

बिजली कंपनियों पर पहले से है उपभोक्ताओं का सरप्लस

अवधेश वर्मा ने यह भी दावा किया कि प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर पहले से ही ₹33,122 करोड़ रुपये का सरप्लस (अतिरिक्त जमा राशि) है। ऐसे में कंपनियों द्वारा हर माह ‘ईंधन अधिभार’ के नाम पर वसूली करना अनुचित है। उनकी मांग है कि कंपनियां अगर वसूली करना ही चाहती हैं, तो उतनी राशि उपभोक्ताओं के सरप्लस खाते से समायोजित करें, ताकि आम उपभोक्ता पर सीधा बोझ न पड़े।

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