भारत और यूरोप के बीच नई आर्थिक साझेदारी
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने दिल्ली में यूरोपीय संसद की अंतरराष्ट्रीय व्यापार समिति (INTA) के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। इस दौरान दोनों पक्षों के बीच सहयोग को और गहरा करने और पारस्परिक आर्थिक तालमेल को अधिकतम करने पर चर्चा हुई। जयशंकर ने कहा कि यह समझौता लोकतांत्रिक शक्तियों को मजबूत करेगा और वैश्विक आर्थिक ढांचे को स्थिरता प्रदान करेगा।
ऐतिहासिक समझौते की ओर बढ़ते कदम
भारत और यूरोपीय संघ के बीच यह मुक्त व्यापार समझौता कई वर्षों से चर्चा में है, लेकिन हाल के महीनों में इसमें तेजी आई है। दोनों पक्षों ने 2025 के अंत तक इस समझौते को अंतिम रूप देने का साझा संकल्प व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने भी दिसंबर तक समझौते की रूपरेखा तय करने की प्रतिबद्धता जताई है।
व्यापार, निवेश और तकनीकी साझेदारी
एफटीए के तहत भारत को यूरोपीय बाजारों में कम शुल्क और आसान पहुंच मिलेगी, जिससे भारतीय निर्यातकों को बड़ी राहत होगी। वहीं, यूरोपीय कंपनियों के लिए भारत में निवेश और उत्पादन के अवसर बढ़ेंगे। यह समझौता ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल, टेक्नोलॉजी, वस्त्र और सेवा क्षेत्र में नई साझेदारियां स्थापित करेगा। साथ ही, दोनों पक्षों ने इस बात पर सहमति जताई है कि यह समझौता संतुलित और निष्पक्ष होगा, जिससे दोनों अर्थव्यवस्थाओं को समान लाभ मिलेगा।
चीन पर दबाव, भारत के लिए अवसर
भारत और ईयू के बीच मजबूत आर्थिक गठजोड़ से चीन की व्यापारिक रणनीति पर सीधा असर पड़ेगा। यूरोपीय बाजारों में भारत की उपस्थिति बढ़ने से चीन की निर्भरता घटेगी और भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (Global Supply Chain) का प्रमुख केंद्र बन सकता है। यही कारण है कि इस समझौते को “भारत का रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक” माना जा रहा है।

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