अमेरिका-चीन के बीच समझौता, चीन ने दी रियायतें
बुसान बैठक में दोनों नेताओं ने टैरिफ में कमी पर सहमति जताई। अमेरिका ने चीन पर लगाए गए आयात शुल्क को 20% से घटाकर 10% करने की घोषणा की। इसके बदले में चीन ने कई वादे किए, अवैध फेंटानिल ड्रग्स पर कड़ी कार्रवाई, अमेरिकी सोयाबीन की खरीद फिर से शुरू करना, और रेयर अर्थ मेटल्स के निर्यात को जारी रखना। यह मुलाकात 2019 के बाद दोनों नेताओं की पहली आमने-सामने बैठक थी, और इसे वैश्विक व्यापार जगत में एक “ट्रेड ट्रूस” यानी अस्थायी शांति के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
भारत ने दिखाया साहस - ‘दबाव में नहीं करेंगे डील’
जहां चीन ने समझौते के लिए रियायतें दीं, वहीं भारत ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि वह अमेरिकी दबाव या धमकी में आकर कोई व्यापार समझौता नहीं करेगा। भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने जर्मनी में एक कार्यक्रम के दौरान कहा की “भारत किसी सौदे को जल्दबाजी में या सिर पर बंदूक रखकर नहीं करता। हमारे लिए व्यापार समझौते भरोसे और दीर्घकालिक साझेदारी पर आधारित होते हैं।” उन्होंने अमेरिका द्वारा रूसी तेल कंपनियों रोजनेफ्ट और लुकोइल पर लगाए गए प्रतिबंधों की आलोचना करते हुए कहा कि जब जर्मनी और ब्रिटेन को छूट दी गई है, तो भारत को क्यों निशाना बनाया जा रहा है?
भारत-अमेरिका ट्रेड डील पर गतिरोध क्यों?
भारत और अमेरिका के बीच मार्च 2025 से व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है। अब तक पांच दौर की बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन मामला कृषि और डेयरी उत्पादों पर अटका हुआ है। अमेरिका चाहता है कि भारत अपने बाजारों को अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए खोले, जबकि भारत ने इसे सख्ती से खारिज कर दिया है। भारत का तर्क है कि अमेरिकी उत्पादों में जेनेटिकली मॉडिफाइड (GMO) सामग्री और पशु-आधारित चारा उपयोग होता है, जो भारत की संस्कृति और स्वास्थ्य हितों के विपरीत है। इसके बाद अमेरिका ने भारत पर 50% तक का टैरिफ और रूसी तेल की खरीद पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाने का फैसला किया, लेकिन भारत ने अपनी नीति नहीं बदली।
भारत की रणनीति -आत्मनिर्भर और विविध व्यापार
पीयूष गोयल ने साफ किया कि भारत किसी भी अंतरराष्ट्रीय समझौते को राजनीतिक दबाव या समयसीमा के आधार पर नहीं करेगा। भारत ने अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए अपने व्यापार को विविधता दी है, दक्षिण अमेरिका, मध्य एशिया और अफ्रीका के साथ नए व्यापार समझौते, घरेलू मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात पर ध्यान, और ऊर्जा सुरक्षा के लिए बहुस्तरीय साझेदारी पर फोकस।
चीन झुका, भारत डटा रहा
इस पूरे घटनाक्रम में जहां चीन ने अमेरिका के साथ समझौता कर रियायतें दीं, वहीं भारत ने सैद्धांतिक रूप से दृढ़ रुख अपनाया। भारत के पास चीन जैसी सौदेबाजी की ताकत भले न हो, जैसे रेयर अर्थ मेटल्स या सोयाबीन आयात। लेकिन उसने स्पष्ट किया है कि उसकी विदेश नीति दबाव नहीं, साझेदारी पर आधारित है। भारत और अमेरिका के बीच नवंबर तक एक संभावित ट्रेड डील की बात चल रही है, मगर भारत ने साफ कह दिया है कि समझौता तभी होगा जब यह दोनों देशों के हितों के अनुकूल होगा।
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