पराली जलाने की समस्या
हर साल धान या गेहूं की कटाई के बाद खेतों में बड़ी मात्रा में पराली बच जाती है। समय की कमी और संसाधनों की कमी के कारण किसान इसे जलाने पर मजबूर हो जाते हैं। इससे वायु प्रदूषण फैलता है। धुएं के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और जलवायु पर दुष्प्रभाव भी पड़ते हैं।
योजना का उद्देश्य
“पराली दो, खाद लो” अभियान का मकसद है किसानों को पराली जलाने के बजाय उसे उपयोगी संसाधन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करना हैं। सरकार चाहती है कि किसान पराली को स्थानीय गौशालाओं या निर्धारित संग्रह केंद्रों पर दें, जिसके बदले में उन्हें गोबर से बनी जैविक खाद (ऑर्गेनिक मैन्योर) मुफ्त में मिलेगी।
कैसे होगा फायदा?
किसान अपनी पराली गांव की गोशालाओं या तय केंद्रों पर जमा करेंगे। गोशालाओं में इस पराली से कम्पोस्ट या जैविक खाद तैयार की जाएगी। इसके बदले किसानों को मुफ्त खाद दी जाएगी, जिससे खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता सुधरेगी। रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता घटेगी और खेती की लागत भी कम होगी।
नियम और जुर्माने
सरकार ने पराली जलाने पर सख्त प्रावधान भी रखे हैं: 2 एकड़ से कम भूमि पर जलाने पर ₹2,500 का जुर्माना, 2 से 5 एकड़ के बीच पर ₹5,000 का जुर्माना, 5 एकड़ से अधिक पर ₹15,000 प्रति घटना तक का जुर्माना। इसलिए पराली न जलाएं और इसे जमा कर खाद लें।
आधुनिक उपाय
कृषि विभाग किसानों को बायो-डिकम्पोजर के उपयोग के लिए भी प्रोत्साहित कर रहा है, जिससे फसल अवशेष तेजी से सड़कर खाद में बदल जाते हैं। इससे मिट्टी में कार्बन की मात्रा बढ़ती है और अगली फसल के लिए पोषण बना रहता है।
पंचायतों और गोशालाओं की भूमिका
ग्राम पंचायतों और किसान समितियों को इस योजना में सक्रिय भूमिका दी गई है। गोशालाओं में पराली एकत्र कर जैविक खाद तैयार की जाएगी, जिसे फिर किसानों को लौटाया जाएगा। यह स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन और सामुदायिक भागीदारी को भी बढ़ावा देगा।

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