सितंबर 2025 में भारत से यूरोप को भेजा गया डीज़ल निर्यात 1.3 से 1.4 मिलियन मीट्रिक टन (यानि 9.7 से 10.4 मिलियन बैरल) तक पहुंच गया जो अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है। यह आंकड़ा रॉयटर्स की रिपोर्ट में LSEG, Kpler और व्यापारिक सूत्रों के हवाले से सामने आया है।
क्यों बढ़ा यूरोप को भारतीय डीज़ल का निर्यात?
यूरोप में शीत ऋतु की बढ़ती ऊर्जा मांग और रिफाइनरियों के रखरखाव (मेंटेनेंस सीजन) की वजह से वहां डीज़ल की आपूर्ति सीमित हो गई है। अक्टूबर में यूरोप की लगभग 5.5 से 6 लाख बैरल प्रतिदिन रिफाइनिंग क्षमता बंद रहने की संभावना है, जो सितंबर में लगभग 4 लाख बैरल थी। मांग में बढ़ोतरी के चलते यूरोपीय बाज़ार में डीज़ल की कीमतें मज़बूत बनी हुई हैं, जिससे भारतीय निर्यातकों को बेहतर मुनाफा मिल रहा है।
शिपिंग लागत में गिरावट से भी मिला बढ़ावा
डिलीवरी लागत में आई गिरावट भी इस निर्यात में बड़ी भूमिका निभा रही है। भारत से यूरोप तक 90,000 टन परिष्कृत ईंधन भेजने की लागत सितंबर के दूसरे पखवाड़े में 3.25 से 3.5 मिलियन डॉलर रही। अगस्त के अंत में यह लागत 4 से 4.2 मिलियन डॉलर के बीच थी। शिपिंग दरों में लगभग 10 डॉलर प्रति टन की गिरावट से निर्यातकों को अतिरिक्त लाभ हुआ।
अमेरिका की नीतियों के बीच भारत की चुपचाप चाल
अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ भले ही व्यापारिक संबंधों में तनाव का संकेत देते हैं, लेकिन भारत ने पश्चिमी देशों के ऊर्जा संकट को अवसर में बदलते हुए अपनी स्थिति को और मज़बूत किया है। भारत न केवल एशिया का सबसे बड़ा डीज़ल सप्लायर बनकर उभरा है, बल्कि यूरोपीय बाज़ार में रूस की जगह भरने की क्षमता भी दर्शा चुका है।
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