साथ ही प्रशिक्षण अवधि को उनकी नियमित सेवा में जोड़ने के आदेश भी जारी किए गए हैं। यह आदेश रामचंद्र दुबे सहित 61 याचियों की याचिका पर न्यायमूर्ति अजित कुमार की एकलपीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम की दलीलों को सुनने के बाद पारित किया।
2010–11 बैच के पुलिसकर्मियों ने दाखिल की थी याचिका
याचिकाकर्ता 2010/11 बैच के वे सब-इंस्पेक्टर और इंस्पेक्टर हैं जिन्हें, प्रयागराज जोन, नोएडा एनसीआर, गाजियाबाद, मेरठ, आगरा, गोरखपुर, कानपुर, बरेली, वाराणसी आदि जिलों में तैनात किया गया है। इन पुलिसकर्मियों ने मांग की थी कि उनकी ट्रेनिंग अवधि को सेवा अवधि में जोड़ा जाए, और सातवें वेतन आयोग के अनुरूप पूरी सैलरी व एरियर दिया जाए।
इस सन्दर्भ में याचियों की क्या है दलील?
याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम ने अदालत को बताया कि समकक्ष पदों पर तैनात अन्य दरोगाओं व इंस्पेक्टरों को प्रशिक्षण अवधि का वेतन व भत्ते दिए गए हैं, जबकि अनुकंपा आधारित नियुक्त पुलिसकर्मियों को केवल स्टाइपेंड ही दिया गया है। प्रशिक्षण अवधि को उनकी सेवा में न जोड़ने से वेतनवृद्धि और संशोधित वेतनमान के लाभ से वंचित रहना पड़ रहा है।
उन्होंने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने पहले भी मृतक आश्रित कोटे से नियुक्त दरोगाओं के पक्ष में आदेश दिया था कि उन्हें प्रशिक्षण अवधि में वेतन दिया जाए। इसके अतिरिक्त, प्रदेश सरकार ने 29 मार्च 2022 को एक शासनादेश जारी करते हुए प्रशिक्षण अवधि की सैलरी देने की अनुमति भी दी थी, लेकिन वर्तमान याचियों को इसका लाभ नहीं मिला।
हाईकोर्ट ने 2 माह में कार्रवाई के दिए निर्देश
अदालत ने अपर पुलिस महानिदेशक (कार्मिक एवं स्थापना) तथा डीजीपी मुख्यालय, लखनऊ को निर्देश दिया है कि वे 08 सितंबर 2021 को पारित आदेश के अनुरूप दो माह के भीतर आवश्यक निर्णय लें। अदालत ने साफ कहा कि प्रशिक्षण अवधि को सेवा में जोड़ते हुए पूर्ण वेतन देना होगा, क्योंकि समान परिस्थिति में तैनात पुलिसकर्मियों को यह लाभ पहले से दिया जा रहा है।

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