RELOS समझौता: क्या है खास
इस समझौते पर 18 फरवरी 2025 को मॉस्को में हस्ताक्षर किए गए थे। भारत के राजदूत विनय कुमार और रूस के तत्कालीन उप रक्षा मंत्री अलेक्जेंडर फोमिन ने इसे साइन किया था। इसका उद्देश्य लॉजिस्टिक सहयोग आसान बनाना, संयुक्त सैन्य अभ्यास और आपदा राहत अभियानों के दौरान समर्थन सुनिश्चित करना। समझौते की मंजूरी से दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग और मजबूत होगा।
भारत और रूस के लिए महत्व
स्थानीय रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, इस समझौते से सैन्य गतिविधियों की प्रक्रिया सरल होगी। दोनों देश अब एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों और संसाधनों का शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए उपयोग कर सकेंगे। भविष्य में आर्कटिक क्षेत्र में होने वाले संयुक्त अभ्यासों में यह समझौता लागू हो सकता है, क्योंकि भारत की LNG आपूर्ति यमाल प्रायद्वीप से होती है।
नौसेनाओं को मिलेगा लाभ
भारतीय नौसेना के INS विक्रमादित्य और तलवार-श्रेणी के युद्धपोत रूस के नौसैनिक अड्डों का उपयोग कर सकेंगे, जो बर्फीले आर्कटिक वातावरण में ऑपरेशन करने में सक्षम हैं। वहीं, रूसी नौसेना भी भारत के समुद्री ठिकानों का उपयोग कर सकेगी। इसका रणनीतिक महत्व है हिंद महासागर क्षेत्र में चीन और अन्य बाहरी देशों की मौजूदगी पर संतुलन बनाना।

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