अमेरिका की एशिया में घटती पकड़
रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका अभी भी एशिया की सबसे बड़ी शक्ति है, लेकिन उसकी पारंपरिक श्रेष्ठता अब उतनी मजबूत नहीं रही। अमेरिकी प्रभाव में कमी का बड़ा कारण पूर्व अमेरिकी प्रशासन द्वारा लगाए गए टैरिफ और आर्थिक नीतियां मानी गई हैं। इन नीतियों ने एशिया में अमेरिकी कूटनीतिक पकड़ को कमजोर किया और क्षेत्रीय सहयोग की गति पर भी असर डाला। इसके बावजूद, अमेरिका के पास ऐसी दीर्घकालिक क्षमताएं और संसाधन हैं, जो किसी भी राजनीतिक नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी उसकी स्थिति को मजबूत बनाए रखते हैं।
चीन ने कम किया अंतर
चीन ने पिछले एक दशक में अपनी सैन्य, आर्थिक और तकनीकी क्षमताओं को तेजी से बढ़ाया है। रिपोर्ट के अनुसार चीन और अमेरिका दोनों ही एशिया के बाकी सभी देशों से कहीं आगे हैं। इन दोनों दिग्गजों के बाद तीसरे स्थान पर अब भारत आता है, जिससे स्पष्ट है कि भारत ने भी वैश्विक शक्ति-संतुलन में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है।
भारत के लिए सकारात्मक संकेत
पूर्व विदेश सचिव सैयद अकबरुद्दीन द्वारा साझा जानकारी के अनुसार भारत इस सूची में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। यह उपलब्धि भारत की बढ़ती आर्थिक क्षमता, वैश्विक राजनयिक सक्रियता और रक्षा तैयारियों का परिणाम मानी जा रही है। भारत का यह उत्थान एशिया की राजनीति में उसके महत्व को और बढ़ाता है।
ऑस्ट्रेलिया की ताकत में गिरावट
रिपोर्ट में उल्लेख है कि ऑस्ट्रेलिया, जो पहले ऊपरी रैंकिंग में बना रहता था, अब फिसलकर छठे स्थान पर पहुंच गया है। दिलचस्प बात यह है कि कई महत्वपूर्ण क्षेत्रीय समझौतों के बावजूद उसकी ताकत में कमी दर्ज की गई है। लोवी इंस्टीट्यूट की विशेषज्ञ सुजाना पैटन का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था अन्य एशियाई देशों की तुलना में अपेक्षाकृत धीमी गति से बढ़ रही है, जिसके कारण उसकी प्रभावशीलता कमजोर हुई है।
रूस की अप्रत्याशित मजबूती
पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस ने अपनी आर्थिक क्षमता में मामूली बढ़ोतरी दर्ज कराई है। इसी वजह से वह ऑस्ट्रेलिया को पीछे छोड़कर पांचवें स्थान पर पहुंच गया है। यह बदलाव बताता है कि वैश्विक दबावों के बीच भी रूस ने अपनी रणनीतिक और आर्थिक स्थिति को संभाले रखा है।
एशिया का भविष्य: कौन रहेगा सबसे ऊपर?
2025 की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका और चीन आने वाले वर्षों में भी एशिया की दो सबसे बड़ी शक्तियाँ बने रहेंगे। भारत और जापान जैसी उभरती ताकतें हालांकि तेजी से आगे बढ़ रही हैं, लेकिन अभी भी दोनों महाशक्तियों से काफी पीछे हैं। क्षेत्र में आर्थिक और सैन्य प्रतिस्पर्धा के साथ–साथ कूटनीतिक संतुलन भी नए दौर में प्रवेश कर रहा है।
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