धारा 47(5): उपभोक्ताओं का कानूनी अधिकार
विद्युत अधिनियम–2003 की धारा 47(5) साफ कहती है कि उपभोक्ता यह तय करेंगे कि वे बिजली का बिल प्रीपेड मोड में देना चाहते हैं या पोस्टपेड मोड में। यानी किसी भी ऊर्जा प्रदाता कंपनी को एकतरफा तौर पर उपभोक्ता के मीटर को प्रीपेड में बदलने का अधिकार नहीं है।
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने आयोग के ताज़ा आदेश का हवाला देते हुए कहा कि बिजली कंपनियों को कानून का पालन करना होगा। उन्होंने सवाल उठाया कि जब कानून उपभोक्ताओं को विकल्प देता है तो फिर प्रीपेड मोड को अनिवार्य बनाने या उपभोक्ता की सहमति के बिना स्मार्ट मीटर को प्रीपेड में बदलने का अधिकार पावर कॉरपोरेशन को कैसे हो सकता है।
क्यों ज़रूरी है यह निर्देश?
पिछले कुछ महीनों से उपभोक्ताओं की शिकायतें बढ़ रही थीं कि बिना सहमति के उनके स्मार्ट मीटर को प्रीपेड मोड में बदला जा रहा है। इससे न केवल उपभोक्ताओं को बिलिंग का तरीका अचानक बदलने की परेशानी झेलनी पड़ रही थी, बल्कि कई बार रिचार्ज न होने पर सप्लाई भी बाधित होने जैसी स्थिति बन रही थी। आयोग के इस स्पष्ट निर्देश के बाद उम्मीद है कि पावर कॉरपोरेशन को अपनी व्यवस्था में बदलाव करना पड़ेगा और उपभोक्ताओं को स्वयं यह तय करने दिया जाएगा कि वे अपनी बिजली खपत का भुगतान किस तरीके से करना चाहेंगे।
न्यायालयों में लंबित मामले
आयोग ने यह भी बताया कि स्मार्ट मीटर और प्रीपेड सिस्टम से जुड़ी कई याचिकाएँ न्यायालयों में लंबित हैं, इसलिए इस विषय पर अभी अधिक टिप्पणी नहीं की जा सकती। लेकिन इतना स्पष्ट कर दिया गया है कि अधिनियम में कहीं भी स्मार्ट प्रीपेड मीटर को अनिवार्य करने का प्रावधान नहीं है।
आगे क्या है उम्मीद?
उपभोक्ता संगठनों ने मांग की है कि बिना उपभोक्ता की अनुमति के किसी भी स्मार्ट मीटर को प्रीपेड मोड में बदले जाने पर तत्काल रोक लगे। साथ ही पावर कॉरपोरेशन उपभोक्ताओं को दोनों विकल्प प्रीपेड और पोस्टपेड स्पष्ट रूप से उपलब्ध कराए।

0 comments:
Post a Comment