चीन के लद गए दिन, भारत की मौज, अमेरिका अब भी बॉस!

नई दिल्ली। दुनिया की अर्थव्यवस्था के इंजन की जब भी बात होती थी, पहला नाम चीन का ही आता था। दो दशक तक उसने न सिर्फ़ ग्लोबल ग्रोथ को खींचा बल्कि कई देशों की सप्लाई चेन का आधार भी बना रहा। लेकिन अब तस्वीर तेजी से बदल रही है। वह चीन, जो कभी रफ्तार का दूसरा नाम था, आज कई मोर्चों पर लड़खड़ाता दिख रहा है।

चीन की रफ्तार क्यों हो रही है धीमी?

चीन की इकॉनमी को सबसे बड़ा झटका उसके रियल एस्टेट संकट ने दिया है। चार सालों से चल रही यह समस्या इतनी गहरी हो चुकी है कि वह पूरे अर्थतंत्र के लिए गले की हड्डी बन गई है। चीन की जीडीपी में रियल एस्टेट का योगदान करीब एक-तिहाई है और यही हिस्सा अब पूरे सिस्टम को नीचे खींच रहा है।

निवेश का हाल भी बदहाल है। साल 2025 के शुरुआती 10 महीनों में फिक्स्ड एसेट इनवेस्टमेंट इतिहास में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज कर चुका है। जिस देश में कभी हर तरफ क्रेन और कंस्ट्रक्शन की आवाज़ें सुनाई देती थीं, वहां अब निवेशक हाथ खींच रहे हैं। खासकर प्रॉपर्टी सेक्टर में तो गिरावट दो अंकों में पहुँच चुकी है।

अमेरिका बनाम चीन: दूरी अभी बहुत बाकी

चाहे चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो, लेकिन प्रति व्यक्ति आय की तुलना साफ कर देती है कि विकास की दौड़ में अमेरिका से उसकी दूरी अभी विशाल है। अमेरिका में जहां प्रति व्यक्ति आय लगभग $90,000 है, वहीं चीन अभी $14,000 के आस-पास पहुंचा है। यह अंतर बताता है कि औसत नागरिक की समृद्धि के मामले में चीन को अभी लंबा सफर तय करना है।

भारत की मौज, इस गिरावट में छिपा सुनहरा मौका

चीन की सुस्ती भारत के लिए एक ‘विंडो ऑफ ऑपर्च्युनिटी’ बनकर उभर रही है। वैश्विक जगत में भारत पहले से ही सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है। ऐसे माहौल में निवेशक और कंपनियां एक नए भरोसेमंद ठिकाने की तलाश में हैं और भारत उनके लिए तेजी से मजबूत विकल्प बन रहा है। कोविड के बाद दुनिया भर की कंपनियों ने ‘चीन-प्लस-वन’ की रणनीति अपनायी है। यही कारण है कि टेक, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो, सप्लाई चेन और मैन्युफैक्चरिंग में भारत की ओर झुकाव तेजी से बढ़ रहा है।

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