भारतीय नौसेना को मिलेगा व्यापक लाभ
इस समझौते के तहत भारतीय नौसेना को न केवल पोर्ट कॉल करने का अधिकार मिलेगा, बल्कि लंबी दूरी के समुद्री मिशनों में रीफ्यूलिंग, लॉजिस्टिक सपोर्ट और मेंटेनेंस जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध होंगी। इससे हिंद महासागर और उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र में भारतीय नौसेना की क्षमता और ऑपरेशनल रेंज में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह समझौता भारतीय नौसेना की रणनीतिक पहुंच को नई दिशा देगा और समुद्री सुरक्षा में भारत की भूमिका को मजबूत करेगा।
पुतिन के भारत दौरे से पहले मिली मंजूरी
हालांकि यह समझौता भारत और रूस के बीच फरवरी 2025 में मॉस्को में साइन किया गया था, लेकिन रूसी संसद ने इसे राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से पहले रैटिफाई किया। यह कदम दोनों देशों के दशकों पुराने रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करता है।
रेलोस समझौते की प्रमुख विशेषताएं
दोनों देशों के नौसैनिक और मिलिट्री यूनिट्स के लिए पोर्ट और एयरफील्ड का उपयोग। लॉजिस्टिक सपोर्ट, रीप्लेनिशमेंट और मेंटेनेंस की सुविधा। जॉइंट एक्सरसाइज, ट्रेनिंग मिशन, मानवीय और आपदा राहत ऑपरेशंस में सहयोग। हिंद महासागर से लेकर आर्कटिक तक ऑपरेशनल पहुंच में वृद्धि।
हिंद महासागर में रूस की उपस्थिति
स्टेट ड्यूमा के चेयरमैन व्याचेस्लाव वोलोडिन ने कहा कि भारत और रूस के रिश्ते स्ट्रेटेजिक और व्यापक हैं। रेलोस के माध्यम से रूस भी भारतीय नौसेना के ठिकानों का इस्तेमाल कर सकेगा। इससे हिंद महासागर में अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती मिल सकती है और क्षेत्रीय संतुलन पर असर पड़ेगा।
आर्कटिक क्षेत्र में भारत का नया कदम
इस समझौते से भारत का आर्कटिक और ध्रुवीय क्षेत्र में भी ऑपरेशनल प्रभाव बढ़ेगा। भारतीय नौसेना अब चीन की बढ़ती मौजूदगी का मुकाबला कर सकती है और अपने वैज्ञानिक और समुद्री हितों की सुरक्षा कर सकती है। रूस के लिए भी यह एक स्थायी और भरोसेमंद साझेदार के रूप में भारत की भूमिका को मजबूत करेगा।

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