शिक्षा-कोष ऐप ने खोली पोल
जांच में यह स्पष्ट रूप से पाया गया कि कई शिक्षक बिना स्कूल आए ही उपस्थिति दर्ज कर रहे थे। ई-शिक्षा कोष ऐप पर अपलोड की गई उपस्थिति की तस्वीरों और समय के आंकड़ों की गहन जांच के बाद यह खुलासा हुआ। कई मामलों में शिक्षक प्रस्थान समय दर्ज किए बिना ही विद्यालय से गायब हो जाते थे, जिससे यह साबित हो गया कि वे स्कूल में नियमित रूप से उपस्थित नहीं थे।
प्रधानाध्यापक भी जांच के घेरे में
डीईओ मदन राय के अनुसार, बिना प्रधानाध्यापकों की मिलीभगत के यह फर्जीवाड़ा संभव नहीं है। कुछ मामलों में यह भी पाया गया कि सहकर्मी शिक्षक, अनुपस्थित शिक्षक की फर्जी उपस्थिति दर्ज करने में मदद कर रहे थे। डीईओ ने स्पष्ट किया है कि जिन विद्यालय प्रधानों और शिक्षकों की भूमिका संदेहास्पद पाई जाएगी, उन पर भी कार्रवाई तय है।
नौकरी पर आ सकता है संकट
शो-कॉज नोटिस में साफ कहा गया है कि यदि शिक्षकों द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं होता, तो नौकरी से बर्खास्तगी तक की कार्रवाई की जा सकती है। विभाग ने यह रुख अपनाया है कि ऐसे मामलों में कोई नरमी नहीं बरती जाएगी, क्योंकि यह सरकारी धन और छात्रों दोनों के साथ विश्वासघात है।
शिक्षा व्यवस्था पर सवाल
इस घटना ने एक बार फिर बिहार की सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब शिक्षक ही अपने कर्तव्यों से भागने लगें, तो बच्चों की पढ़ाई और भविष्य दोनों पर संकट आ जाता है। यह मामला न केवल शिक्षा की गुणवत्ता से जुड़ा है, बल्कि लोक प्रशासन, जवाबदेही और तकनीकी निगरानी की पारदर्शिता से भी जुड़ा हुआ है।
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