बता दें की चीन, जो तीन दशकों से ‘दुनिया की फैक्ट्री’ के रूप में स्थापित रहा है, अब धीरे-धीरे अपने आकर्षण को खोता नजर आ रहा है। कभी सस्ती लागत और तेज उत्पादन क्षमता के कारण कंपनियों का पसंदीदा ठिकाना रहा चीन, अब नीतिगत सख्ती, भू-राजनीतिक अस्थिरता और वैश्विक सप्लाई चेन में हेरफेर जैसे कारणों से आलोचना झेल रहा है।
चाइना प्लस वन नीति का असर
कोविड-19 महामारी के बाद वैश्विक कंपनियों ने ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति को अपनाना शुरू कर दिया है। इसका मतलब है कि कंपनियां अब चीन के साथ-साथ किसी अन्य देश में भी उत्पादन इकाइयां स्थापित कर रही हैं, ताकि संकट की स्थिति में निर्भरता कम हो सके। इस नीति से भारत और वियतनाम जैसे देशों को विशेष लाभ मिला है।
भारत के लिए बढ़ते अवसर
भारत इस बदलाव को अवसर में बदलने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है। 'मेक इन इंडिया' अभियान, प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम और एफडीआई नियमों में सुधार जैसे प्रयास भारत को विदेशी निवेश के लिए एक मजबूत विकल्प बना रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की युवा जनसंख्या, तकनीकी कौशल और लोकतांत्रिक व्यवस्था विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने में सहायक सिद्ध हो सकती है। टेस्ला, एप्पल और फॉक्सकॉन जैसी बड़ी कंपनियों की भारत में दिलचस्पी इसका प्रमाण हैं।
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