भारत ने की अमेरिका-रूस की बराबरी! चीन के उड़े होश!

नई दिल्ली। भारत अब केवल एक रक्षा बाजार नहीं, बल्कि एक उभरती हुई रक्षा महाशक्ति बन चुका है। दशकों तक सैन्य उपकरणों और सामग्रियों के लिए विदेशों पर निर्भर रहने वाला देश, अब उन गिने-चुने देशों की सूची में शामिल हो गया है जो अपने रक्षा तंत्र के लिए अत्याधुनिक सामग्रियों का निर्माण स्वयं कर सकते हैं।

आत्मनिर्भरता की दिशा में एक निर्णायक मोड़

'ऑपरेशन सिंदूर' ने न केवल भारत की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि तकनीकी आत्मनिर्भरता समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इस अभियान में स्वदेशी हथियारों की सफलता ने यह दिखा दिया कि भारत अब केवल रक्षा तकनीक का उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्माता भी बन चुका है।

इस अनुभव ने भारत को यह सोचने पर मजबूर किया कि अगर युद्ध या तनाव के समय कोई देश महत्वपूर्ण कंपोनेंट्स की आपूर्ति रोक दे, तो क्या भारत सक्षम होगा? यही सोच भारत को सुपरएलॉय, टाइटेनियम, बेरिलियम और टैंटलम जैसे एडवांस्ड मैटेरियल्स के घरेलू उत्पादन की दिशा में ले गई।

दुनिया के 6 अग्रणी देशों में भारत का नाम

आज भारत अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन जैसे रक्षा महाशक्तियों के साथ खड़ा है—उन देशों की कतार में जो मिसाइल, फाइटर जेट और पनडुब्बी जैसे उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले हाई-टेक मटेरियल्स का खुद निर्माण कर सकते हैं। यह एक तकनीकी क्रांति है, जो भारत को रणनीतिक स्वतंत्रता देती है।

मिसाइल कारखाना: स्वदेशी का प्रतीक

भारत की आत्मनिर्भरता का एक जीवंत उदाहरण उत्तर प्रदेश के लखनऊ में स्थापित हुआ ब्रह्मोस मिसाइल कारखाना है। इस परियोजना को निजी क्षेत्र की कंपनी पीटीसी इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड ने स्थापित किया है, जो टाइटेनियम जैसे जटिल धातुओं का उत्पादन भी करेगी। इससे भारत न केवल अपने लिए रक्षा सामग्री बना पाएगा, बल्कि भविष्य में निर्यात की भी राह खुल जाएगी।

विदेशी दबाव की राजनीति अब नहीं चलेगी

पीटीसी इंडस्ट्रीज़ के सीएमडी सचिन अग्रवाल की बात बिल्कुल सटीक है—अब भारत को किसी भी देश की “डिप्लोमैटिक ब्लैकमेलिंग” का सामना नहीं करना पड़ेगा। युद्ध या संकट के समय कोई देश यदि आवश्यक कंपोनेंट्स की आपूर्ति रोकना चाहे, तो भारत अब आत्मनिर्भर होकर उस स्थिति का मुकाबला कर सकता है।

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