भारत की 'तीसरी आंख' तैयार: अब स्टेल्थ विमान भी नहीं बच पाएंगे

नई दिल्ली। भारत ने रक्षा तकनीक के क्षेत्र में एक और बड़ा कदम बढ़ाते हुए वह हासिल कर लिया है, जो अब तक केवल कुछ चुनिंदा देशों के पास था। DRDO द्वारा विकसित किया गया Multistatic Radar System न केवल आधुनिक रडार तकनीक में भारत को आत्मनिर्भर बना रहा है, बल्कि अब भारत को ‘अदृश्य दुश्मनों’ से भी सतर्क रखने में सक्षम है। यह तकनीक आने वाले समय में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की रीढ़ बनने जा रही है।

क्या है Multistatic Radar System?

Multistatic Radar एक अत्याधुनिक रडार प्रणाली है जो पारंपरिक रडार से बिलकुल अलग तरीके से काम करती है। सामान्य रडार सिस्टम में ट्रांसमीटर (signal भेजने वाला) और रिसीवर (signal पकड़ने वाला) एक ही जगह होते हैं। लेकिन Multistatic Radar में ये दोनों अलग-अलग जगहों पर स्थापित होते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि दुश्मन का विमान अगर एक दिशा से भेजे गए सिग्नल से बच भी निकलता है, तो दूसरी दिशा से आने वाले सिग्नल उसे पकड़ सकते हैं। यही बात इसे खास बनाती है, खासकर स्टेल्थ विमानों के मुकाबले में।

स्टेल्थ तकनीक: छुपे हुए खतरे

स्टेल्थ टेक्नोलॉजी का अर्थ होता है — रडार की पकड़ से बाहर रहना। इस तकनीक से लैस विमान ऐसे डिजाइन और मटीरियल से बने होते हैं, जो रडार सिग्नल को या तो अवशोषित कर लेते हैं या उसे दूसरी दिशा में मोड़ देते हैं।

Multistatic Radar कैसे काम करता है?

Multistatic Radar एक सिग्नल को कई दिशाओं से फैलाता है और विभिन्न स्थानों पर रखे रिसीवर्स उसे पकड़ते हैं। अगर दुश्मन का विमान एक ट्रांसमीटर से आने वाले सिग्नल से बच जाए, तो अन्य रिसीवर उसे पकड़ सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति

Multistatic Radar जैसी टेक्नोलॉजी आज तक अमेरिका, रूस और कुछ यूरोपीय देशों तक सीमित थी। भारत ने अब इस सूची में प्रवेश कर लिया है — और वह भी अपनी खुद की तकनीक के बल पर। यह सिर्फ एक रडार सिस्टम नहीं, बल्कि भारत की तकनीकी सोच और रणनीतिक दूरदर्शिता का प्रतीक है।

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