नई दिल्ली। भारत अब सिर्फ समुद्र के नीचे चुपचाप चलने वाली पनडुब्बियों पर निर्भर नहीं रहना चाहता — अब वह चाहता है कि उसकी पनडुब्बियां आसमान में भी ताकत दिखा सकें, वो भी बिना सतह पर आए। इसी सोच के साथ रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) एक ऐसी तकनीक विकसित कर रहा है, जो आने वाले वर्षों में समुद्री युद्ध के नियम ही बदल देगी।
ULUAV: पानी के नीचे से आसमान तक का सफर
ULUAV यानी Unmanned Launchable Underwater Aerial Vehicle — नाम जितना जटिल, काम उतना ही खतरनाक। ये एक ऐसा ड्रोन है जिसे पारंपरिक पनडुब्बी के टॉरपीडो ट्यूब से लॉन्च किया जा सकता है। पहले ये समुद्र की गहराइयों में छिपा रहता है, फिर सतह पर आकर एक आम ड्रोन की तरह उड़ान भरता है।
यह तकनीक इसलिए खास है क्योंकि इससे भारत की पनडुब्बियां बिना अपनी लोकेशन बताए दुश्मन के इलाके में गहरी नजर रख सकती हैं। इससे न केवल खुफिया जानकारी इकट्ठा की जा सकती है, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर, भ्रम फैलाने वाले नकली लक्ष्य और जरूरत पड़ी तो हमला करने जैसे मिशन भी पूरे किए जा सकते हैं।
कैसे करता है काम?
ULUAV एक सील बंद कैनिस्टर में रखा जाता है, जिसे पनडुब्बी से छोड़ा जाता है। यह कैनिस्टर पानी की सतह पर पहुंचकर खुलता है और उसमें से ड्रोन आसमान की ओर उड़ जाता है। इस दौरान पनडुब्बी पूरी तरह पानी के अंदर ही छिपी रहती है, जिससे उसकी पहचान नहीं होती। इसका मतलब है कि भारत की पनडुब्बियां अब दूर-दराज के तटीय इलाकों, दुश्मन के जहाजों और समुद्री गतिविधियों पर नजर रख सकती हैं — वो भी बिना खुद सामने आए।
अब बारी है 'अंडरवाटर स्वार्म्स' की
DRDO सिर्फ हवा में उड़ने वाले ड्रोन तक ही सीमित नहीं है। अब वह समुद्र के नीचे चलने वाले रोबोटिक झुंड (swarm) पर भी काम कर रहा है। ये Unmanned Underwater Vehicles यानी UUVs, एक साथ मिलकर काम करने के लिए बनाए जा रहे हैं। इनका संचालन एक मदरशिप पनडुब्बी से किया जाएगा।
इनसे क्या होगा फायदा?
समुद्र में बिछाई गई खतरनाक माइनों का पता लगाना, दुश्मन की पनडुब्बियों की खोज करना, तटीय सुरक्षा को मजबूत करना, समुद्र तल की मैपिंग करना, जरूरत पड़ने पर समूह में हमला करना। यह तकनीक ठीक वैसे ही काम करेगी जैसे मधुमक्खियों का झुंड — coordinated, तेज़ और लगभग अदृश्य।
भारत अब सिर्फ पीछा नहीं कर रहा, बराबरी में खड़ा है
ULUAVs और अंडरवाटर स्वार्म जैसी तकनीकों पर अब तक केवल अमेरिका, चीन और रूस जैसे महाशक्तियां काम कर रही थीं। लेकिन भारत ने अब इस फेहरिस्त में अपनी जगह बनानी शुरू कर दी है। DRDO की यह कोशिश सिर्फ एक नई टेक्नोलॉजी लाना नहीं है, बल्कि भारत को भविष्य के नौसैनिक युद्धों के लिए तैयार करना है।
0 comments:
Post a Comment