भारत को लेकर पुतिन ने दिए आदेश, अमेरिका तक आहट!

नई दिल्ली। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत के साथ अपने संबंधों को एक नई ऊंचाई पर ले जाने के संकेत दिए हैं। उन्होंने दिसंबर की शुरुआत में प्रस्तावित भारत यात्रा से पहले एक स्पष्ट संदेश दिया है कि रूस भारत के साथ व्यापार असंतुलन को गंभीरता से ले रहा है और इसे सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे। यह पहल न केवल द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को नया आयाम देगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसके दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं, खासकर अमेरिका जैसे देशों की नजर में।

रूस की पहल: व्यापार घाटा कम करने के निर्देश

पुतिन ने अपनी सरकार को निर्देश दिया है कि भारत के साथ व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए त्वरित उपाय किए जाएं। यह असंतुलन मुख्यतः भारत द्वारा रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल और उर्वरक के आयात के कारण पैदा हुआ है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का रूस से व्यापार घाटा 57.18 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। वहीं, भारत का रूस को निर्यात महज 4.26 अरब डॉलर रहा, जबकि रूस से आयात 61.44 अरब डॉलर के स्तर पर रहा।

पुतिन ने इस असंतुलन को केवल आर्थिक मुद्दा बताते हुए कहा कि इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी माना कि यदि भारत रूस से ऊर्जा संसाधनों का आयात बंद करता है तो उसे अरबों डॉलर का नुकसान उठाना पड़ेगा, जो उसकी आंतरिक राजनीतिक स्थिरता पर भी असर डाल सकता है। ऐसे में दोनों देशों के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वे आपसी व्यापार को संतुलित बनाने के प्रयास तेज करें।

ऐतिहासिक संबंधों पर भरोसा

सोची में आयोजित वल्दाई चर्चा मंच पर पुतिन ने भारत के साथ दशकों पुराने संबंधों की सराहना करते हुए कहा कि रूस और भारत के बीच कभी कोई अंतर-राज्यीय विवाद नहीं रहा है। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता संग्राम के समय से सोवियत संघ की भूमिका और उस युग से चले आ रहे द्विपक्षीय विश्वास को रेखांकित किया। पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर भी भरोसा जताया और कहा कि भारत की नीति हमेशा आत्मसम्मान और स्वतंत्र निर्णय पर आधारित रही है, और भविष्य में भी ऐसा ही रहेगा।

भविष्य की दिशा: नई तकनीक और नवाचार

व्यापार असंतुलन के समाधान के साथ-साथ पुतिन ने भारत-रूस साझेदारी के नए क्षेत्रों की ओर भी संकेत दिया। उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), हेल्थकेयर, कृषि और इनोवेशन जैसे उभरते क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने की बात कही। इसके अलावा दोनों देशों के बीच भुगतान प्रणाली, लॉजिस्टिक्स और वित्तीय अवरोधों को हटाने की जरूरत भी सामने रखी गई, ताकि दोनों देशों के कारोबारी संबंधों को सुगम और व्यवहारिक बनाया जा सके।

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