चुनाव का शेड्यूल और संवैधानिक बाध्यता
ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों के मौजूदा प्रतिनिधियों का कार्यकाल क्रमश: 26 मई, 19 जुलाई और 11 जुलाई 2026 को समाप्त हो रहा है। सामान्य स्थिति में अगले पंचायत चुनाव अप्रैल–मई 2026 में आयोजित होने चाहिए, ताकि कार्यकाल की निरंतरता बनी रहे। लेकिन आरक्षण प्रक्रिया में देरी के कारण यह शेड्यूल प्रभावित हो सकता है।
आयोग की भूमिका और समयसीमा
ओबीसी आरक्षण लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी स्थानीय निकाय चुनाव में बिना डेटा आधारित अध्ययन के आरक्षण नहीं दिया जा सकता। इसके लिए समर्पित आयोग को राज्य में पिछड़े वर्गों की सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक स्थिति का आकलन करना होता है। यह रिपोर्ट ही तय करती है कि आरक्षण का प्रतिशत कितना होगा और किन वर्गों को शामिल किया जाएगा।
विभागीय सूत्रों के अनुसार, यह अध्ययन जिलेवार किया जाता है, जिसमें आयोग को आमतौर पर छह महीने तक का समय लगता है। ऐसे में अगर आयोग गठन के तुरंत बाद काम शुरू भी करता है, तो रिपोर्ट तैयार होने और उस पर सरकार की सहमति मिलने तक चुनावी कार्यक्रम में विलंब लगभग तय माना जा रहा है।
शासन स्तर पर स्थिति
पंचायतीराज विभाग के अधिकारियों का कहना है कि आयोग गठन से संबंधित प्रस्ताव शासन को भेजा जा चुका है। अब निर्णय मुख्यमंत्री कार्यालय या मंत्रिपरिषद की स्वीकृति पर निर्भर है। जब तक आयोग बनता नहीं और रिपोर्ट सामने नहीं आती, तब तक ओबीसी आरक्षण की प्रक्रिया को अंतिम रूप देना संभव नहीं है और आरक्षण तय हुए बिना चुनाव कराना कानूनी रूप से मुश्किल है।
क्या 2026 पंचायत चुनाव टलेंगे?
चुनाव आयोग और राज्य सरकार दोनों ही संवैधानिक दायित्वों के तहत समय पर चुनाव कराने के लिए बाध्य हैं, लेकिन यदि कानूनी और तकनीकी कारणों से प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तो चुनाव टलना एकमात्र विकल्प रह जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव की तैयारियों को देखते हुए आयोग गठन में अब और देरी हुई, तो समय पर चुनाव कराना लगभग असंभव हो जाएगा।

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